Source: ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਡਾ ਕਿ ਜਾਸੁ ਉਪਾਇਆ

ब्रहमा बडा कि जासु उपाइआ

जिवे अज कोई ,किसे बाबे, पीर , गुरू नूं मंनदा है तां उह किसे दूसरे विआकती नूं ओथै डेरे लिजाण वासते आखदा है कि मेरा बाबा, मेरा पीर , जां मेरा गुरू बहुत करनी वाला है। तूं ओथै चल तेरी हरेक इछा ओथै पूरी हो जावेगी।

भगत कबीर जी दे समे वी इही कुझ चलदा सी। ओदो वी लोक जिस नूं मंनदे जिस दी पूजा करदे सी। उस नूं सभ तो वडा मंनदे सी। भगत कबीर जी जदो “निरंकार परमेसर” जी नाल इक मिक हो गए तां “परमेस़र”जी नूं जो बेनती करदे हन। आउ विचार करदे हां।

झगरा एकु निबेरहु राम॥ जउ तुम अपने जन सौ कामु॥१॥ रहाउ॥ इहु मनु बडा कि जा सउ मन मानिआ॥ रामु बडा कै रामहि जानिआ॥१॥ ब्रहमा बडा कि जासु उपाइआ॥ बेदु बडा कि जहां ते आइआ॥२॥ कहि कबीर हउ भइआ उदासु॥ तीरथु बडा कि हरि का दासु॥३॥४२॥

झगरा एकु निबेरहु राम॥

जउ तुम अपने जन सौ कामु॥१॥रहाउ॥

भगत कबीर जी “परमेस़र “जी नूं बेनती करदे आखदे हन कि हे राम, जे तुसी मेरे कोलो कोई कंम करवाउणा चहुंदे हो तां पहिला दुनीआ ते इक झगरा चलदा है पहिला उस दा निबेड़ा करो मेरे मन विच इक संका है। पहिला इस नूं दूर करो। संका की,

इहु मनु बडा कि जा सउ मन मानिआ॥

कहिंदे इह मन वडा है कि जां जिस नूं सुण के इह मन मंन गिआ। ओह वडा है। फिर अंदरो अवाज आई कबीर इह मन वडा नही है। ओह “गिआन उपदेस़” वडा है जिस नूं सुण के, समझ के, मन दुनिआवी इछावा दा तिआग करके आपणे मूल हरि नाल रहिण वासते मंन गिआ भाव तिआर हो गिआ। साडे कोल इस समे गुरमित गुरबाणी विचला गिआन उपदेस है। जो मन नूं आतम समरपण करन लई मजबूर कर दिंदा है। बसरते इनसान इमानदारी नाल गुरमित नूं मंनण वाला होवै। जिहड़ा मन किसे दे वस नही आउदा। गुरमुख भगत इस मन नूं तत गिआन दा संगल पा के संतोख रूपी किले नाल बंन लैदे हन। अते कई दिन भुखा रख के गुरमति विचला गुणां रूपी अंन भोजन अते आतम तत गिआन रूपी “मखण” छकाउदे हन। सो कहिण तो भाव मन तो वडा आतम गिआन, तत गिआन” है।

रामु बडा कै रामहि जानिआ॥१॥

अगे कहिंदे रामु वडा है कि जो रामु ने जाणिआ। सवाल राम ने की जाणिआ, अंदरो अवाज आई परमेस़र दा नाम, हुकम, कहिंदे रामु नही वडा। रामु नालो परमेस़र दा “नाम हुकम” वडा है उस मूहरे तां रामु नूं सिर झकाउणा पैदा है। सवाल रामु कोण है। जवाब आइआ। इह निराकारी रामु जो हरेक दे घट मन हिरदे अंदर बोलदा है।

सभै घट रामु बोलै रामा बोलै॥ राम बिना को बोले रे॥

अगे,

ब्रहमा बडा कि जासु उपाइआ॥

अगे कहिंदे दुनीआ ते ब्रहमा वडा कि जासु उपाइआ भाव जिस ने ब्रहमा नूं पैदा कीता। अंदरो अवाज कबीर, दुनीआ ते ब्रहमा वडा नही जिस ने ब्रहमा नूं पैदा कीता अते जिस विचो ब्रहमा पैदा होइआ ओह वडा है। सवाल ब्रहमा नूं किस ने पैदा कीता। जवाब आइआ। ओअंकार ब्रहमा उतपति। भाव परमेसर दे हुकम नाल ब्रहमा दी उतपती सिरजना होई है।

ब्रहमा पैदा होइआ है साडे मूल ब्रहम हरि विचो। ब्रहमा नालो तां वडा तां ब्रहम है। सवाल, ब्रहमा कोण है। जवाब,

बबा ब्रहमु जानत ते ब्रहमासभै घट रामु बोलै रामा बोलै॥ राम बिना को बोले रे॥

भाव जिस ने आपणे मूल ब्रहमु नूं जाण लिआ ओह ब्रहमा ही है। कहिण तो भाव दुनीआ ते ब्रहमा वडा नही। ब्रहमा तो वडा ब्रहम है। इहना दोवा तो वडा परमेसर पारब्रहम है।

बेदु बडा कि जहां ते आइआ॥२॥

अगे कहिंदे बेदु बडा है कि जिथो बेद आइआ ओह वडा है। बेद दा अरथ है गिआन। कहिण तो भाव इह गिआन वडा कि जिथो गिआन आइआ है ओह वडा है। अंदर अवाज आई दुनीआ ते जिंनीआं ब्रहम दे गिआन दीआ पुसतका गरंथ हन। जिस ने ब्रहम गिआन नूं आपणे भगता राही दुनीआ ते प्रगट कीता ओह वडा है। ओह कोण है ,पारब्रहम परमेसर। गुरबाणी विच फुरमान है।

सतिगुर की बाणी सति सति जाणहु गुरसिखहु हरि करता आपि मुहहु कढाए॥

नानक पातस़ाह जी फुरमान करदे हन।

जैसी मै आवै खसम की बाणी तैसड़ा करी गिआनु वे लालो॥

कहिण तो भाव दुनीआ विच सभ तो वडा आतम गिआन तत गिआन है । पर इस तो वडा पारब्रहम परमेसर दा नाम “हुकम ” है ।

कहि कबीर हउ भइआ उदासु॥ तीरथु बडा कि हरि का दासु॥३॥४२॥

भगत कबीर जी , गुरबाणी दीआ अंतम पंगतीआ विच फ़ुरमाण करदे हन कि , मै इस गलो उदास हां कि दुनीआ ते सभ तो वडा तीरथ है कि हरि का दास।

अंदरो अवाज आई कबीर, दुनीआ ते कोई तीरथ जा अज दे सधरब विच सरोवर वडा नही है। तीरथ सरोवर, नालो ता वडा हरि का दास है। किउके बाहर किसे वी तीरथ सरोवर ते नहाउण नाल तां पिंडे दी ही मैल उतरदी है। पर हरि के दास दी उचारन कीती गुरमति गुरबाणी विच इसनान करन नाल जनम जनम मन दी मैल उतरदी है।

मैल तां मन दी उतरनी है , निरमल वी मन ही होणा है, बदेही तां होणी ही नही कदे निरमल, बाहरली बदेही दे नहाउण नूं तां पिंडा धोणा किहा है, नाल इह वी किहा है कि पिंडा धोण नाल सूचे नही हो सकदे,

सूचे एहि न आखीअहि बहनि जि पिंडा धोइ॥(पंना 472)

गुरमत विच इसनान करन नाल इह कउआ मन चिटा हंस बण जांदा है।

किआ हंसु किआ बगुला जा कउ नदरि धरे॥ जे तिसु भावै नानका कागहु हंसु करे॥


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