Source: “ਗੋਪਾਲ ਤੇਰਾ ਆਰਤਾ” ਜਾਂ “ਗੋਪਾਲ, ਤੇਰਾ ਆ ਰਤਾ”
धंना॥६९५॥ गोपाल तेरा आरता॥
गो (सुरत बुधी) पाल (पालणा करना वाला ) "गोपाल "।
गोपाल, तेरा आ रता।
हे गोपाल, मै तेरे दर ते आ गिआ। मैनूं तूं आपणे रंग विच रंग दिता। किहड़े रंग विच, ब्रहम गिआन तत गिआन दे रंग विच।
जो जन तुमरी भगति करंते तिन के काज सवारता॥१॥ रहाउ॥
हे गोपाल, जिहड़े तेरी भगती करदे हन तूं उहना दे काज सवार दिंदा है। काज निराकारी। कंम दुनिआवी।
भगति(गुर की मति तू लेहि इआने॥भगति बिना बहु डूबे सिआने॥)इह भगती।
दालि सीधा मागउ घीउ॥
हे गोपाल, मै मन ,चित करके "दालि "हां।(अब किउ उगवे दालि)भाव मेरा मन माइआ विच है।मैनूं आपणे मूल हरि नाल जुड़न वासते सीधा "नाम गिआन "दे देओ।( जे इकु होइ त उगवै)
हमरा खुसी करै जीउ॥
इह "नाम आतम गिआन खाण नाल मेरा जीउ । भाव मेरा मन हर समे खुस रहे।
पन्हीआ छादनु नीका॥ अनाजु मगउ सतु सी का॥
पान्हीआ भाव राम उधक। छादनु भाव भोजन। नीका सोहणा। हे गोपाल, मैनूं "राम उधक ( नाम अंम्रित) जो बहुत सोहणा है इह दे देओ। इह सतु सी का भाव सच रूपी द्रिड़ता वाले अनाज दी ही मेरी मंग है।
गऊ भैस मगउ लावेरी॥
हे गोपाल, मैनूं इक ऐसी "बुधदी बखसिस करो। जो "बुध(लवेरी गऊ भैस )दी तरां दुध देण वाली होवे। ऐसी बुध जो के" जो कि तेरे नाम हुकम नाल जुड़ के,लोका नूं गुर सबद गुर गिआन वंडण वाली होवै।
इक ताजनि तुरी चंगेरी॥
हे गोपाल, इह बुध । सुरत करके इक तेज तरार, तेज रफतार वाली घोड़ी वरगी होणी चाहीदी है। जो कि मन नूं चारे पासे तो घेर के रखे।
घर की गीहनि चंगी॥
हे गोपाल, घर की गीहनि। मेरी आपणी सोच। (जो कि हमेसा हर समे साडे अंदर बणी रहिंदी है) मैनूं चंगी सोच दिओ,इह सोच सरबत दा भला मंगण वाली होवे।(सतिगुरु सभना दा भला मनाइदा तिस दा बुरा किउ होइ )
जनु धंना लेवै मंगी॥
हे गोपाल, तेरा जन धंना बस तेथो इह ही मंगदा हां।