Source: ਬ੍ਰਹਮ ਮਹਿ ਜਨੁ ਜਨ ਮਹਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥ਏਕਹਿ ਆਪਿ ਨਹੀ ਕਛੁ ਭਰਮੁ ॥

ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु ॥एकहि आपि नही कछु भरमु ॥

ब्रहम दे विचों ही जन पैदा होइऐ ,बीज विचों ही पौदा निकलदै, जन अंदर पारब्रम है। स़बद गुरू प्रगास है हरि जन दे हिरदे विच, हुकम प्रगट हुंदै, पौदे विच फल जां बीज हुंदै, बीज विच पौदा हुंदै कुझ इस तर्हां दी गल है | मन वी तां ब्रहम विचों ही पैदा हुंदै, जदो इही मन हरि का सेवक बण जांदा भाव हरि का जन बण जांदा,तां उदों इक है, पूरनम है, उही उगदै स़बद गुरू नाल भाव हुकम नाल जुड़के ,अते सबदु च भाव हुकम विच समा के हुकम ही हो जांदा , इथे जाके खालसा बणदा, ओही रूप बण जांदै,जन ही पारब्रहम बणदै, पहिलां मन ही सुरत सी, मन ही जन बणिआ,जन हो के इक हो गिआ, हरि जन दी सुरत ही नाम विच लीन हुंदी है, सुरत ने स़बद विच लीन होणै, जो सचखंड दी इछा है ओही अपणा लई,, जिहो जी इछा सचखंड वालिआं दी है वैसी ही इछा होण लग पई परमारथ वाली, आपणी हउं ते मैं तां रही ही नहीं., एकहि ही है आप..इक हो के उग पिआ..सबद विच समा गिआ, ओही अवसथा नूं पहुंच गिआ जो सचखंड वालिआं दी है, ऐथों अगे कुझ नहीं, भरम नहीं है ते
प्रचंड गिआन है..पूरन ब्रहम तों पारब्रहम तक पहुंच गिआ


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