Source: ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਵੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥ ਤਾ ਸੁਣਿ ਸਦਿ ਬਹਾਲੇ ਪਾਸਿ

सतु संतोखु होवै अरदासि ॥ ता सुणि सदि बहाले पासि

सतु संतोखु होवै अरदासि ॥
ता सुणि सदि बहाले पासि ॥१॥

सत – मूल , संतोख – मन . जदों मन संतोखी हो जावे ते सत नाल मिल जावे तां इहनां दोनां दी अरदास दरगाह अगे हुंदी है . फिर जदों परमेस्वर दी मरजी होवे इह अरदास सुणदा ते इस नूं राजा राम बणा दरगाह विच बिठालदा है . अरदास सिरफ इक ही है , उह है नाम दी. उह अरदास उनी देर तक नहीं जिंनी देर तक मन माइआ वलों संतोख विच नहीं आउंदा .

पउड़ी ॥
नाइ सुणिऐ सभ सिधि है
रिधि पिछै आवै ॥
नाइ सुणिऐ नउ निधि मिलै
मन चिंदिआ पावै ॥
नाइ सुणिऐ संतोखु होइ
कवला चरन धिआवै ॥
नाइ सुणिऐ सहजु ऊपजै
सहजे सुखु पावै ॥
गुरमती नाउ पाईऐ

गुर की कीरति जपीऐ हरि नाउ ॥
गुर की भगति सदा गुण गाउ ॥
गुर की सुरति निकटि करि जानु ॥
गुर का सबदु सति करि मानु ॥२॥
गुर बचनी समसरि सुख दूख ॥
कदे न बिआपै त्रिस़ना भूख ॥
मनि संतोखु सबदि गुर राजे ॥
जपि गोबिंद पड़दे सभि काजे ॥३॥

जन कै संगि निहालु
पापा मैलु धोइ ॥
अंम्रितु साचा नाउ
ओथै जापीऐ ॥
मन कउ होइ संतोख
भुखा पीऐ ॥
जिसु घटि वसिआ नाउ
तिसु बंधन काटीऐ ॥
गुर परसादि किनै विरलै
हरि धनु खाटीऐ ॥५॥

पारब्रहम की दरगह गवे ॥
सुनि करि बचन करन आघाने ॥
मनि संतोखु आतम पतीआने ॥
पूरा गुरु अखओ जा का मंतु ॥
अंम्रित द्रिसटि पेखै होइ संत ॥
गुण बिअंत कीमति नही पाइ ॥
नानक जिसु भावै
तिसु लए मिलाइ ॥४॥

पउड़ी ॥
दसमी दस दुआर बसि कीने ॥
मनि संतोखु नाम जपि लीने ॥
करनी सुनीऐ जसु गोपाल ॥
नैनी पेखत साध दइआल ॥
रसना गुन गावै बेअंत ॥
मन महि चितवै पूरन भगवंत ॥
हसत चरन संत टहल कमाईऐ ॥

होर बेअंत पंकतीआं हन . हरि हमेशां ही संतोखी है , मन ने संतोखी होणा है ( जो नरु दुख मै दुखु नही मानै ) . इकला संतोख मुकती तक तां लै के जा सकदा, जिवें बाकी दीआं मतां विच वी संतोख दी गल है ( इछा तिआग के ) पर गुरमत सत संतोख दी अरदास करदी है. दोइ कर जोड़ दी अरदास है , रास आउणा जां ना आउणा अगे परमेस्वर हथ है.

हरि संतोखी है, फिर हाऊ किस कोल है ?

साहिब ( हरि ) तां संतोख नाल दरगाह दी हजूरी विच ही है , संतोख नाल बैठा अंदर साह लै रिहा . पर हउ रोग है अजे , इसे लई दरगाह अंदर दाखला नहीं.

सलोक म १ ॥
हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि जंमिआ हउ विचि मुआ ॥
हउ विचि दिता हउ विचि लइआ ॥
हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥
हउ विचि सचिआर कूड़िआरु ॥
हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥
हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥
हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥
हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥
हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥
हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥
मोख मुकति की सार न जाणा ॥
हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥
हउमै करि करि जंत उपाइआ ॥
हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥
गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥
नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥
जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥१॥

सलोकु ॥
काम क्रोध अरु लोभ मोह बिनसि जाइ अहंमेव ॥
नानक प्रभ सरणागती करि प्रसादु गुरदेव ॥१॥

म ३ ॥
सतिगुरू फुरमाइआ कारी एह करेहु ॥
गुरू दुआरै होइ कै साहिबु संमालेहु ॥
साहिबु सदा हजूरि है भरमै के छउड़ कटि कै अंतरि जोति धरेहु ॥
हरि का नामु अंम्रितु है दारू एहु लाएहु ॥
सतिगुर का भाणा चिति रखहु संजमु सचा नेहु ॥
नानक ऐथै सुखै अंदरि रखसी अगै हरि सिउ केल करेहु ॥२॥

म ५ ॥
नानक बैठा भखे वाउ लमे सेवहि दरु खड़ा ॥
पिरीए तू जाणु महिजा साउ जोई साई मुहु खड़ा ॥२॥


Source: ਸਤੁ ਸੰਤੋਖੁ ਹੋਵੈ ਅਰਦਾਸਿ ॥ ਤਾ ਸੁਣਿ ਸਦਿ ਬਹਾਲੇ ਪਾਸਿ