Source: ਏਕ ਨੂਰ ਤੇ ਸਭੁ ਜਗੁ ਉਪਜਿਆ

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ

एक नूर ते सभु जगु उपजिआ कउन भले को मंदे ॥१॥

जैसे एक आग ते कनूका कोट आग उठे निआरे निआरे हुइ कै फेरि आग मै मिलाहिगे ॥ जैसे एक धूर ते अनेक धूर पूरत है धूर के कनूका फेर धूर ही समाहिगे ॥ जैसे एक धूर ते अनेक धूर पूरत है धूर के कनूका फेर धूर ही समाहिगे ॥ जैसे एक नद ते तरंग कोट उपजत हैं पान के तरंग सबै पान ही कहाहिंगे ॥ जैसे एक नद ते तरंग कोट उपजत हैं पान के तरंग सबै पान ही कहाहिंगे ॥ तैसे बिस्व रूप ते अभूत भूत प्रगट हुइ ताही ते उपज सबै ताही मै समाहिगे ॥१७॥८७॥ ( अकाल उसतति स्री गुरू दसम बाणी )

इस तों सोखी भास़ा विच एक नूं समझाणा स़ाइद मुस़कल होवे । उधारना दे के समझा रहे ने पातस़ाह


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