Source: ਅੱਖਾਂ ਅਤੇ ਨੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਫਰਕ

अखां अते नेतरां विच फरक

अखां नाल सरीर/बदेही, माइआ, जग रचना दिसदी है, नेत्रां नाल आपणा आपा दिसदा है, आपणे अवगुण, आपणे घट अंदरली अवसथा दिसदी है "देही गुपत बिदेही दीसै॥। नेत्र घट दीआं देही दीआं अखां हन जिस नाल हुकम, जोत, घट अंदरला अंम्रित दिसदा। गिआन है अंजन (सुरमा) ते नाम है (सोझी), नेत्र जिहनां नाल दिब द्रिसटी मिलदी। आउ वीचारीए।

गुर गिआन अंजनु सचु नेत्री पाइआ॥

गुरमति सरीर दीआं अखां नूं नेत्र नहीं मंनदी। विदवान प्रचारक विदिआ अते गिआन नूं नेत्र मंनी जांदे। गिआन तां पड़्हन वाले नूं वी हो सकदा पर सोझी विचारन वाले नूं हुंदी गुणां नूं धिआन विच रखण वाले नूं हुंदी।

से नेत्र परवाणु जिनी दरसनु पेखा॥ से कर भले जिनी हरि जसु लेखा॥ से चरण सुहावे जो हरि मारगि चले हउ बलि तिन संगि पछाणा जीउ॥२॥ – सवाल इह बणदाके जो अकाल मूरत है उसदे दरसनु किवें होणे? इह होणे नेत्रां नाल "नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ॥ अते "गिआन महा रसु नेत्री अंजनु त्रिभवण रूपु दिखाइआ॥ । देखा ते पेखा दे विच वी फरक है कंनां ते स्रवणी विच वी फरक है। उसदी सोझी होणा उसदे हुकम दी सोझी पैणी सचु नेत्रां नाल। "गिआन अंजनु गुरि दीआ अगिआन अंधेर बिनासु ॥

नेत्र प्रगासु कीआ गुरदेव॥ भरम गए पूरन भई सेव॥१॥ – नेत्रां दा परगास होणा गुर प्रसाद नाल (गुणां दी विचार नाल बाणी दी विचार नाल) जिस नाल भरम दा नास हुंदा।

जिनि करि उपदेसु गिआन अंजनु दीआ इन॑ी नेत्री जगतु निहालिआ॥ – इथे वी बाणी आखदी भाई उपदेस दुआरा गिआन अंजन प्रापत होणा जिस दे नाल जगतु निहालिआ जाणा।

अकली साहिबु सेवीऐ अकली पाईऐ मानु॥ अकली पड़ि॑ कै बुझीऐ अकली कीचै दानु॥ नानकु आखै राहु एहु होरि गलां सैतानु॥१॥ – पातिस़ाह आखदे अकली साहिब दी सेवा होणी जो है "गुर की सेवा सबदु वीचारु॥, गिआन पड़्हिआ जा सकदा सुणिआ जा सकदा पर बिना बूझे सोझी नहीं प्रापत हुंदी। जिवें सकूलां विच बचे २ सट्रोक इंजन ४ सट्रोक इंनजन ते डीसल इंजन किवें कंम करदा इसदे बारे पड़्हदे ने। इह इंजन दा गिआन हो गिआ। फेर कुझ हुंदे ने जिहड़े इस गिआन विच वाधा करदे ने। जिवें मकैनिक इंजन ठीक कर लैंदा खोल के वेखिआ वी हुंदा के इंजन अंदरों दिसदा किहो जिहा है। उहनां दे गिआन विच थोड़ा जिआदा वाधा हुंदा किउंके उहनां इंजन वेखिआ। कई विरले हुंदे जिहनां इंजन कंम किवें करदा दे नाल नाल इंजन बणाइआ वी हुंदा। उहनां नूं सोझी हुंदी के इंजन विच की बदलाव करीए केव उह तेज चले वधीआ माईलेज देवे। असीं रोज बाणी पड़ रहे हां। कईआं नूं बाणी कंठ वी है, फटर फटर सुणा वी दिंदे हन। पर की उहनां नूं गिआन है बाणी दा? कई हुंदे जिहनां नूं गिआन हो जांदा पता है के विकार की हन किवें कंम करदे, विकारां ते जित किवें पाणी पर जित पा नहीं सके। गिआन तों सोझी तक नहीं गए। फेर हन भगत जिहनां ने सोझी वाली अवसथा प्रापत कर लई। भावें गुरबाणी पूरी कंठ ना होवे पर उहनां विच तत गिआन दा प्रगास हो गिआ।

जिहड़े पड़्ह सुण ते रहे ने पर बूझ नहीं रहे, विचारदे नहीं उहनां लई आखिआ "पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ॥ पड़ि पड़ि बेड़ी पाईऐ पड़ि पड़ि गडीअहि खात॥ पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास॥ पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास॥ नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख॥१॥

जिसने सोझी प्रापत कर के पड़्हिआ विचार के पड़्हिआ फेर की होणा? जवाब दिंदे ने पातिस़ाह बाणी विच "गिआन अंजनु जा की नेत्री पड़िआ ता कउ सरब प्रगासा ॥ उसनूं तत गिआन दी दिब द्रिसटी प्रापत होणी, बाकी सारी दुनीआं भरम दी नींद विच अगिआनता दी रात विच सुती पई हुंदी ते उहनां नूं गिआन दा चानणा हुंदा। "जनम जनम के किलविख दुख भागे गुरि गिआन अंजनु नेत्र दीत ॥

इही गिआन दी आस भगतां ने कीती है "नानक कउ प्रभ किरपा कीजै नेत्र देखहि दरसु तेरा॥१॥

जदों इह नेत्र प्रापत हो गए तां सोझी तों बाहर सब कुझ बाद लगणा "ऐसी पेखी नेत्र महि पूरे गुर परसादि॥ राज मिलख धन जोबना नामै बिनु बादि॥१॥

जदों दिह गिआन तों सोझी हो जांदी है सब गोबिंद (परमेसर दा बिंद) ही दिसदा "सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥ सब उसदे विच रमिआ होइआ राम बोलदा दिसदा "सभै घट रामु बोलै रामा बोलै॥ राम बिना को बोलै रे ॥१॥" उसदे विच हरिआ दिसदा "ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई॥ हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ॥ एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ॥ गुरपरसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई॥ कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई॥, अगिआनता ने विकारां ने जीव नूं अंना कर के रखिआ होइआ है, गिआन दी विचार करके सोझी दे नाम दे नेत्रां नाल दिब द्रिसट प्रापत होणी है। अगिआनता ने साडा हाल इह कीता सी के "भूंडी चाल चरण कर खिसरे तुचा देह कुमलानी॥ नेत्री धुंधि करन भए बहरे मनमुखि नामु न जानी॥१॥ अते "डगरी चाल नेत्र फुनि अंधुले सबद सुरति नही भाई॥ सासत्र बेद त्रै गुण है माइआ अंधुलउ धंधु कमाई॥३॥ ते जागणा उहनां ने ही है जिहनां नूं इह नेत्र मिमणे "कहत नानक जनु जागै सोइ॥ गिआन अंजनु जा की नेत्री होइ॥६॥२॥

सो भाई अखां खुलीआं होण जां बंद होण गिआन नाल नेत्र खुलणे जरूरी हन "हिरदै जपउ नेत्र धिआनु लावउ स्रवनी कथा सुनाए॥ चरणी चलउ मारगि ठाकुर कै रसना हरि गुण गाए॥२॥"

जदों भाई सति दी संगत कीती तां नेत्रां नाल गिआन गुरू दी सोझी पैणी "सतसंगति की धूरि परी उडि नेत्री सभ दुरमति मैलु गवाई ॥१॥। जग रचना नूं बाणी झूठ आखदी माइआ मोह विच फसे, झूठ बोलण वाले, विकारां विच ग्रसत लोकां दा इकठ सति संगत नहीं हुंदी। गुरमति अनुसार हुकम सति है, अकाल सत है नाम (सोझी) सति है। जदों मनु ने इकागरचीत हो के घट अंदरली जोत ( घट अंदरले राम/हरि/साधू/संत) दी संगत कीती ते गुणां दी विचार कीती, अकाल पुरख दे गुण घट अंदर गाए उदों सोझी दे नेत्र प्रापत होणे तां गुण उपजणे इही खालस धरम है। "जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥

इही संगत खालसा करदा "गुर संगति कीनी खालसा इही खालसे दी असल संगत है।


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