Source: ਗੁਰਮਤਿ ਵਿੱਚ ਰਾਮ

गुरमति विच राम

गुरमति वाला राम है परमेसर दे गुणां विच रमिआ होइआ सरबविआपी राम जो घट घट (हरेक जीव) दे हिरदे विच वसदा है। अज कल बहुत रौला पिआ है गुरमति वाले राम नूं दसरथ पुतर राम सिध करन दा। बहुत सारे डेरेदार, अखौती सिख विदवान वी इस विच लगु होए ने। पहिलां गल करीए गुरबाणी दा फुरमान है "राम जपउ जीअ ऐसे ऐसे॥ ध्रू प्रहिलाद जपिओ हरि जैसे॥१॥ जिसदा अरथ है राम दी खोज (जपणा – अरॳत पहिचान करो) जिदां ध्रू प्रहिलाद ने हरि नूं जपिआ (पहिचानिआ/जाणिआ) सी, सनातन मति दे ग्रंथां अनुसार प्रहलाद दा जनम दसरथ पुतर राम तों ते सनातन मति दे हरि (क्रिस़न) तों बहुत समे पहिले दा है। नाले जिहड़े नरसिंघ अवतार दी गल सनातन मति करदी है उह विस़नूं दा अवतार सनातन मति विच दसरथ पुतर राम तो पहिलां दा है। सनातन मति वाले अवतार हन मतसिआ, कुरमा, वराहा, नरसिमहा, वामन, पारास़ुराम, राम, क्रिस़ना/बलराम, बुध अते कलकी (Matsya; Kurma; Varaha; Narasimha; Vamana; Parashurama; Rama; Krishna or Balarama; Buddha or Krishna; and Kalki)। हुण तुसीं आप दसो जे गुरमति राम/हरि जपण लई आखदी है ध्रू प्रहलाद लई तां उह राम दसरथ पुतर किवें हो सकदा है। दूसरी गल गुरमति वाले प्रहलाद जन तां कई होए ने। गुरमति विच प्रहलाद दा अरथ है पिआरे पुतर (प्रीए लाध) "सरणागति प्रहलाद जन आए तिन की पैज सवारी ॥२॥, "प्रहलाद जन के इकीह कुल उधारे॥ प्रहलाद जन आइआ नहीं आए दरज है॥ इस कारण गुरबाणी दा फुरमान है के "बेद कतेब कहहु मत झूठे झूठा जो न बिचारै॥, जे वेद कतेब वी पड़्हे होण दूजे धरम ग्रंथ पड़्हे होण ते विचारे होण तां गुरमति किउं वखरी मति है इस बारे पता लगे। कोॲ भटका नहीं सकदा। सिखां विच प्रचार दी कमीं, गुरमति दी सोझी लैण दी थां स़रधा ते गोलक दा वापार बहुत वडा कारण है जो अज सिखां दी समझ विच गिरावट है। चलो आपां गुरमति वाले राम बारे वीचारीए।

"कबीर राम कहन महि भेदु है ता महि एकु बिचारु॥ सोई रामु सभै कहहि सोई कउतकहार॥१९०॥

गुरबाणी वाला राम वखरा है “इक राम दस़रथ का बेटा एक राम घट घट में लेटा ।”, ते पांडे वाले राम चंद बारे गुरमति विच दरज है “पांडे तुमरा रामचंद सो भी आवत देखिआ था॥ रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी॥३॥" – भगत नाम देव जी पांडे नूं पुछदे सी तुहाडा राम चंद वी भवसागर विच आइआ देखिआ है, इह उही है ना जिसने रावण कारण घर दी जोई(जनानी) गवाई सी। इह टिचर नहीं है। उहनां कहिआ साडा राम वखरा है तुहाडा वखरा।

रोवै रामु निकाला भइआ॥ सीता लखमणु विछुड़ि गइआ॥” – गुरमति वाले राम तों सीता (बुध) अते लकस़मन (मन) दोनो बिछड़े ने। तुलसी या पंडित दी रामायण विच सिरफ सीता जी विछड़े सी। दूजी गल रामाइण विच राम रोइआ नहीं सी खुस़ी नाल वनवास ते गिआ सी। गुरमति वाला राम रोवै किउंके सीता (बुध) अते मन (लछमण) दोवें उसतों विछड़े होए ने मासिआ दे मगर भज रहे ने। अते न्रिप कंनिआ (बुध) के कारने भया भेख धारी (मन धारिआ गिआ)।

गुरबाणी वाला राम कौण है "स्री रामचंद जिसु रूपु न रेखिआ॥ बनवाली चक्रपाणि दरसि अनूपिआ॥ सहस नेत्र मूरति है सहसा इकु दाता सभ है मंगा॥४॥। गुरबाणी वाला स्री रामचंद है जिस दा न रूप है ना रेखिआ। इह ता उह राम है जो परमेसर दे गुणा विच रमिआ होइआ है। इही गुरमति वाला राजा राम है जिहड़ा मन ते राज करके भवसागर विच अते गुणा नूं धारण करके दरगाह विच वी पंचा दे राज विच स़ामल है।

जाणी जाणी रे राजा राम कि कहाणी” मन ने राजे नूं राजा मंन लिआ

“रोवै दहसिरु लंक (हिरदै वाल़ा आसण) गवाए॥ जिन सीता अंदी डउरू वाए॥” – सिरफ डमरू (मनमति ने), सीता (बुधि) नूं अपणे नाल जोड़ लिआ।

“मन महि झूरे रामचंद , सीता लछमण जोग , हणवंतरु आराधिआ , आइआ करि संजोग” (गुरमति दुआरा जपु अते फिर अराध कि संजोग होइआ। अते होर पंकतीआं दा संमेलन करके गुरमति विच दसे राम दे भेद नज़दीक जा सकदे हां ।

राम + वण = रावण
भाव वणवास वाला राम: जो पहिला राजा सी सो गुरमति विच राम ही रावण है जिसदा दरगाह तों निकाला होइआ है।

किरपा करके धिआन नाल विचारो जी 휽�
राम दे अभिमान कारण मन दा जनम होइआ। राम दी हउ चो मैं (मन) दा जनम होइआ। घट, हिरदा (Not Heart) राम दा निवास सथान है। लकशमण (मन) नूं consciousness सनातन मत ya Science daan कहिंदे ने। गुरबाणी अनुसार लकश तों टुटेया होइआ मन, लकशमण सुता unconsciousness है। राम conscious है। बुध (सीता) मन दा सत्री रूप है। उसे दे पिछे चलदी है। गुर गिआन नाल इहनूं राम दी खोज विच लाउणा है। जे सीता राम नूं सुण लवे ते लकशमण कमज़ोर महिसूस करेगा अते राम नाल मिल जावेगा इह गुरमुखि रामायण है।

“सतिगुर जागता है दिओ” – अंदरवाला जागदा है , Conscious
“कहा गाफल सोइआ ” – बाहरवाला सुता है , Unconscious

लेले को चुंगे नित भेड़ ” – लेले = मन , भेड़ =बुध , बुध मन पिछे चलदी है

कबीर सुपनै हू बरड़ाइ कै जिह मुखि निकसै रामु ॥ ता के पग की पानही मेरे तन को चामु ॥६३॥” – किसे तराह इस सुपने दौरान गुरमति सुण के राम बोल दवे (Unclear ही सही )

राम अते मन असल विच इक ही हन – “कहिण सुणन को दूजा ” . सिरफ कहिणे सुनण करके 2 ने। जो सुण दा उह हिसा राम , जो कहिंदा , उह मंन। “राम बोले , रामा (मन) बोले “

गुरबाणी वाला राम निराकरी है, पांडे वाला राम बंदा है "पांडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था॥ रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी ॥३॥ गोंड (भ. नामदेव) गुरू ग्रंथ साहिब – ८७५ "

गुरबाणी निराकारी राम दी गल खुल के करदी है l इस नूं गुरमति विच आतम राम वी कहिआ जांदा है अते इह घट घट विच है। इस नूं प्रभ, हरि अते गुर वी लिखिआ गिआ है पर जाणे-अनजाणे सारे टीकाकार इस नूं वाहिगुरू जां परमातमा लिखदे हन जो कि सरासर गलत है। इह जीव दा मूल है अते मूल मंतर इस इक संपूरण राम दे ही अठ गुण दसदा है।

इस नूं इस परकार नाल गुरबाणी ने पेस़ कीता है।.

हरि आतम रामु पसारिआ मेरे गोविंदा हरि वेखै आपि हदूरी जीउ॥३॥
गउड़ी (म: ४) १७४

हरि ही ( अंतिर आतमा ) राम है अते इह हर घट विच पसरिआं है। मेरा ग़ौविदा १ तौ २ हो राम तौ ( मन क्रिसन ) बण कि अपणे आप तौ दूर हो कि वेख रिहा जदों तक जीव इस नूं नहीं खोजदा जनम मरण तों नहीं छुट सकदा।

अनिक जोनि जनमहि मरहि आतम रामु न चीन
गउड़ी ब.अ. (म: ५) २५४

आतम राम नू न्ही चीनीआ ( खोजिआ ) अनेक जनम मरन जूनिआ विच तुरिआ फिरदा है जीव तौ जद मन गुर ( गिआन )दी पिछे तुरिआ ता गुर मुख ने इस नूं खोज लिआ है अते आवा गवण दा चकर मिटा लइआ है।

गुरमुखि झगड़ु चुकाइओनु इको रवि रहिआ ॥

सभु आतम रामु पछाणिआ भउजलु तरि गइआ ॥

गुरमुखि दा किसे नाल वाद विवाद ( झगड़ा ) मुका कि इको आतम राम नाल रवि रिहा भाव मन चित १ हो गे सारे घटा च वस रिहा आतम राम नूं पछाण कि भव सागर दी सीमा पार कर गिआ भाव सुरित टिक गई ए

जोति समाणी जोति विचि हरि नामि समइआ ॥१४॥
सूही की वार: (म: ३) ७९०

जो जोति (चित) तौ मन पैदा होइआ सी हुण ओसे हरि विच ही समा गिआ जिथो राम नू निकाला पिआ सी ओथे दुबारा समा गिआ

रोवै रामु निकाला भइआ ॥
सीता लखमणु विछुड़ि गइआ ॥

राम ( आतमा ) रो रहि ए जो उस तौ पैदा होइ मन ( लछमण ) ते सीता ( बुधि ) उसदी अपणे मूल तौ विछड़ गई है भाव साडा मूल है जो अतम राम है, ओह रो रहिआ इस सीता नामक बुधी अते लखमणु नामक मन नूं ही इस राम (जीव दे मूल) दा मेल करवाउण दा जतन गुरबाणी विच है । जदों इह तिंनो ही मिल जाण तां इह संपुरण मंनिआ जांदा है l

त्रितीआ तीने सम करि लिआवै ॥
आनद मूल परम पदु पावै ॥ पंना ३४३.

इह तिंन हन राम, सीता अते लखमणुइह निराकारी रमाइण है। इस नूं ही राजा राम की कहानी कहिआ गिआ है।

जानी जानी रे राजा राम की कहानी ॥ पंना ९७०.

इस निराकारी राम दी कहानी नूं गुरमुख ने बुझणा है। बूझण नाल बिधाते तक पहुंचण दा सेत (सेतू – अरथ bridge) बणना। "गुरमुखि बांधिओ सेतु बिधातै॥ लंका लूटी दैत संतापै॥ रामचंदि मारिओ अहि रावणु॥ भेदु बभीखण गुरमुखि परचाइणु॥ गुरमुखि साइरि पाहण तारे॥ गुरमुखि कोटि तेतीस उधारे॥४०॥ – गुरमुखि ने ही मन दा अहंकार वाला लंका (गड़्ह/किला) जितणा है ते दैत (विकारां) ते जित पाउणी है।

वेदां वाला राम तां अकाल है अजोनी है जो मां दे कुखबतोंबपैदा नहीं हुंदा। कई आखदे सनातन मति वाला रामाइण वाला राम अजोनी है उही अकाल पुरख है तां गुरबाणी सवाल करदी

"जौ कहो राम अजोनि अजै अति काहे कौ कौसलि कुख जयो जू॥ काल हूं काल कहो जिह कौ किहि कारण काल ते दीन भयो जू॥ सति सरूप बिबैर कहाइ सु कयों पथ को रथ हाकि धयो जू॥ – दसम बाणी विच महाराज ने तरकस़ील पांडे नूं पुछिआ के जे तुहाडा राम ही अजोनि अजै है तां कौसलि (कुस़लिआ) दी कुख तों किउं जनमिआ?

गुरमति नूं विचारो। विचार करों के गुरमति की संदेस़ दी रही है। भटको ना। गुरमति दा फुरमान है "गुरमुखि मनु समझाईऐ आतम रामु बीचारि॥२॥, "आतम रामु पछाणिआ सहजे नामि समानु॥, "सभु आतम रामु पछाणिआ गुरमती निज घरि वासु ॥३॥ राम तां घट घट (हिरदे) विच है हर जीव दे अंदर है जो परमेसर दे गुणा विच रमिआ होइआ है, जिसनूं खोजणा है। गुरमति दा आदेस़ है के आपणे आतम (जोत) नूं राम (रमिआ) होइआ परवान कर ता के संसा (स़ंका/भुलेखा) दूर होवे "सातैं सति करि बाचा जाणि॥ आतम रामु लेहु परवाणि॥ छूटै संसा मिटि जाहि दुख॥ सुंन सरोवरि पावहु सुख॥८॥ – आपणे भीतर दाम वसदा है इही गुरमुख नें परवान करना है।

"जिनी आतमु चीनिआ परमातमु सोई॥

चीनिआ दा अरथ हुंदा चिनहित करना, identify करना, निस़ानदेही करना। आतमु है घट अंदरली जोत "आतम जोति भई परफूलित पुरखु निरंजनु देखिआ हजूरि॥१॥ इह परफूलित (खुस़) हुंदी निरंजन (राम) नूं घट विच हाज़िर (हजूरि) देख के हुंदी।

आतमा तां माइआ दी नींद विच मगन सुती पई है। जिस ने गिआन दे चानणे तोॳन जाग के आतम होणा। विकार उसदी नींद दी पहिरेदारी करदे ने। फेर उसने आप लिवें चीन लैणा? कोई अहंकार दी नींद विच सुता, कोई बाणी सुणदिआं, पड़्हदिआं विचार करदिआं सुता, मेरे वरगे नूं तां लगदा मैनूं भास़ा दा, विआकरण दा गिआन हो गिआ इस लई मैं चीन लिआ। मैनूं पता हो सकदा जां गिआन हो सकदा के आतमा नूं चीनणा है पर गल इह है के जे मैं चीन सकदा होवां तां फेर करता हो गिआ। असल विच "मैं भटक रहिआ हां सुते नूं फुरने उठदे ने भरम हुंदा गिआन होण दा। चीनिआ जाणा हुकम विच, नदर नाल। पर किसदी नदर? किसदा हुकम?

जिस दिन इह समझ आ गिआ के मैं नहीं अंदर राम/हरि तूं हैं। तूं आप अकाल रूप हैं जोत हैं। मैं होण दा भरम खतम हो गिआ उस दिन नदर हो जाणी। विकारां दी मल उतर निरमल हो जाणा। मन मरन तों पहिलां निरमल भगती स़ुरू ही नहीं हो सकदी। बस इधर उधर दीआं टकरां ही हन।

इक होर उदाहरण है जिस तों भरम पैदा हुंदा के गुरमति वाला राम ते रामाइण वाला राम इको ही है। आओ वीचारीए

अंधुलै दहसिरि मूंडु कटाइआ रावणु मारि किआ वडा भइआ॥१॥

मूंडु कटाइआ ते मूंडु कटिआ विच फरक है। नाले कहाणी विच राहण दी नाभी विच तीर मारिआ सी ना के मूंढ कटिआ सी। घट वाला राम है इह। जे रावण (वणवास वाले राम अरअत भरम ) नूं मार इह इक हो वी जांदा तां वी अजे बीज रूप है, उगिआ नहीं। भरम (विकार) दहि सिरा है। इक सिर वढो, नवां निकल आउंदा। भरम दा इसे लई नास करना सौखा नहीं। जदों रावण मर जावे तां सीता ( मत ) अते लकस़ मन आपणे ग्रहि अयुधिआ ( जिथे कोई युध नहीं विलारां दा अरथ थिर घर ) वापिस परतदे ने गुरमति वाले घट अंदर वाले राम।

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Source: ਗੁਰਮਤਿ ਵਿੱਚ ਰਾਮ