Source: ਬ੍ਰਹਮ, ਬ੍ਰਹਮਾ, ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ, ਪੂਰਨਬ੍ਰਹਮ

ब्रहम, ब्रहमा, पारब्रहम, पूरनब्रहम

अज सिखां विच प्रचलित अरथां कारण, अधूरे प्रचार कारण इहनां स़बदां दी समझ ना दे बराबर है। सिखां नूं अंतर ना पता होण कारण कदे गुरू नूं कदे अकाल नूं ब्रहम, पूरनब्रहम ते पारब्रहम कही जाणगे। कदे किसे प्रचारक, गिआनी ने आप समझाइआ नहीं के जे अकाल ही ब्रहम है ते फेर पूरन ब्रहम कौण है। ते जे अकाल ही पूरन ब्रहम है तां पार ब्रहम कौण है? ना ही सिख खोजदे ने ते बाणी नूं समझणा अज किसे दा विस़ा नहीं है। बस मंतरां वांग बाणी पड़्ही जांदे जिआदातर सिख। जदों आखिआ "गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे॥ अते "सो सतिगुरु जिसु रिदै हरि नाउ॥ अनिक बार गुर कउ बलि जाउ॥सरब निधान जीअ का दाता॥ आठ पहर पारब्रहम रंगि राता॥ ब्रहम महि जनु जन महि पारब्रहमु॥। इहनां पंकतीआं दी विचार करीए तां इतनां सपस़ट हो जांदा है के ब्रहम ते पारब्रहम विच फरक है।

गुरबाणी दा फुरमान है "बबा ब्रहमु जानत ते ब्रहमा॥ अते "काइआ ब्रहमा मनु है धोती॥ गिआनु जनेऊ धिआनु कुसपाती॥ । टीकिआं ने अनरथ कीता कदों काइआ नूं मनुख दा सरीर दसिआ। जिहड़ी घट जां देही है उह मनुख दे गिआन दे भांडे नूं आखिआ। इह काइआ बदेही जां हाड मास दा सरीर नहीं है। गुरमति आखदी "अंम्रितु नामु निरंजन पाइआ गिआन काइआ रस भोगं ॥१॥, "कंचन काइआ जोति अनूपु ॥ इथे अरथ है सोने वरगी काइआ (गिआन दा भांडा) जिस विच जोत अनूप वसदी। जे हजे वी स़ंका होवे तां बहुत उदाहरण हन गुरमति विच इसनूं सपस़ट करन लई "सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥ इसनूं विचार लवो। "काइआ कागदु मनु परवाणा॥ इह अलंकार दी भास़ा है metaphorical है के काइआ कागदु (हिरदा) जिसते गिआन तों प्रापत सोझी अरथ नाम लिखिआ जाणा।

सुखीए कउ पेखै सभ सुखीआ रोगी कै भाणै सभ रोगी॥ करण करावनहार सुआमी आपन हाथि संजोगी॥१॥ मन मेरे जिनि अपुना भरमु गवाता॥ तिस कै भाणै कोइ न भूला जिनि सगलो ब्रहमु पछाता॥ रहाउ॥ संत संगि जा का मनु सीतलु ओहु जाणै सगली ठांढी॥ हउमै रोगि जा का मनु बिआपित ओहु जनमि मरै बिललाती॥२॥ गिआन अंजनु जा की नेत्री पड़िआ ता कउ सरब प्रगासा॥ अगिआनि अंधेरै सूझसि नाही बहुड़ि बहुड़ि भरमाता॥३॥ सुणि बेनंती सुआमी अपुने नानकु इहु सुखु मागै॥ जह कीरतनु तेरा साधू गावहि तह मेरा मनु लागै॥४॥६॥ (रागु सोरठ म ५, ६१०)

ब्रहम बारे बिलकुल सपस़ट ही लिखिआ है "घट घट अंतरि ब्रहमु लुकाइआ घटि घटि जोति सबाई ॥ अते "अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी॥ जिस नाल सपस़ट हुंदा है के हरेक जीव अंडज (अंडे तों पैदा होण वाले), जेरज (जरासीम / germs), सेतज (मात गरभ तोॳन पैदा होण वाले) ते उतभुज (भुज जमीन उत – उतपती यानी जमीन तों पैदा होण वाले पेड़ पौदे) सारिआं विच जिहड़ी जोत है उह ब्रहम है। इस नूं जानण वाले समझण वाले नूं आखिआ "बबा ब्रहमु जानत ते ब्रहमा॥। हुण सौखा समझ आ सकदा के "काइआ अंदरि ब्रहमा बिसनु महेसा सभ ओपति जितु संसारा॥ गुरमति वाले ब्रहमा बिसनु महेस इह गिआन दुआरा जीव दे ही मानसिक सथिती नूं दरसाउंदे। इही गल वेद आखदे सी जिहनां तों बाहरी कथा कहाणीआं बणा लईआं गईआं ते सिम्रित स़ासतर लिखे गए। इसे कारण जिथे गुतमति वेदां बारे आखदी "वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ॥, सिम्रित स़ासतॲ बारे आखदे "सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी॥ अते "सिम्रिति बेद पुराण पुकारनि पोथीआ॥ नाम बिना सभि कूड़ु गाल॑ी होछीआ॥१॥

गुरबाणी दा गिआन सारिआं नूं प्रापत नहीं हुंदा किउं? कई सिख वीर भैणां बाणी रोज पड़्हदे ने पर गल समझ नहीं आउंदी किउं? इसदा जवाब तीजे पातिस़ाह ने दिता है, आखदे "गुरु साइरु सतिगुरु सचु सोइ॥ पूरै भागि गुर सेवा होइ॥ सो बूझै जिसु आपि बुझाए॥ गुरपरसादी सेव कराए॥१॥ गिआन रतनि सभ सोझी होइ॥ गुर परसादि अगिआनु बिनासै अनदिनु जागै वेखै सचु सोइ॥१॥। जे आगिआ नहीं गिआन लैण दी तां जोर नाल नहीं लै सकदे "जोरु न सुरती गिआनि वीचारि॥ जोरु न जुगती छुटै संसारु॥ संसार तों छुटण दी कोई जुगत नहीं जो जोर ला के कॲ सकीए।

तिसु सरणाई सदा सुखु पारब्रहमु करतारु ॥१॥,

पारब्रहमु प्रभु एकु है दूजा नाही कोइ ॥

पूरण ब्रहम अते पारब्रहम दी सोझी लई पहिलां एक अते इक दा भेद समझणा ज़रूरी है। इक singular १ (1) है जिवें इक प्राणी/बंदे दे अंदर इक घट है जिस विच इक जोत है। एक वरतिआ जांदा एके लई एकता लई। इह collective noun है। जिवें पिंडां दे सरपंचां दी एक मति होवे। जदों जीव दी गिआन दुआरा अकाल नाल एक मति होणा उह एका है। पंचां (उतम/ स्रेस़ठ) नाल एक मति होणा "पंचा का गुरु एकु धिआनु॥, पंच यानी स्रेस़ठ जोतां दा गुर (गुण) ते धिआन (सोझी) एक है। भगतां गुरूआं दा गिआन उहनां दी सोझी करतार नाल एकता दी होणा।

थान थनंतरि रवि रहिआ पारब्रहमु प्रभु सोइ॥, "जिन मनि वसिआ पारब्रहमु से पूरे परधान ॥, – मनुख ने गुरमति गिआन लैके पंचां नाल एक मति होणा है। जदो गिआन हो गिआ जीव ने गिआन दुआरा गुण लै के आप पूरन ब्रहम अवसथा प्रापत करनी है जिस नाल पारब्रहम दा पता लगणा पछाणिआ जाणा "मिलि नानक पारब्रहमु पछाणा॥। हुकम दी सोझी लैणी है। मन नूं जित के मैं तों एका माई (एके दी मति) वाली अवसथा प्रापत करनी है। घट अंदर बैठा राम (रमिआ होइआ), हरि (गिआन नाल हरिआ होइआ) दिसण दी थां मन (अगिआनता) ने प्रधानगी लई होई है जिस कारण हजे पारब्रहम दे दरसन नहीं होए हन। जदों मन (अगिआनता/दलिदर) मुक गिआ अंदरला राम/ हरि/प्रभ/पारब्रहम) दिस पिआ तां पता लगणा के पारब्रहम किहो जहिआ है "खुदी मिटी तब सुख भए मन तन भए अरोग॥ नानक द्रिसटी आइआ उसतति करनै जोगु॥१॥। "कहु नानक मै सो गुरु पाइआ॥ पारब्रहम पूरन देखाइआ॥। जिसनूं घट अंदरले ब्रहम दा गिआन हो गिआ उह है "ब्रहम गिआनी पूरन पुरखु बिधाता॥ अज अगिआनता वस असीं किसे नूं वी ब्रहम गिआनी आख दिंदे हां पर इह अवसथा असल विच बहुत उची है।

पारब्रहम के सगले ठाउ॥ जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ॥ पसरिओ आपि होइ अनत तरंग॥ लखे न जाहि पारब्रहम के रंग॥

हरेक दे हिरदे विच पारब्रहम दा निवास है। ठाउ हिरदा हुंदा है। इह गल केवल आदमी नहीं सारे जूनीआं दे जीवां दी गल है चाहे बनासपती है, चाहे जल दे जीव, सारे ही जिथे वी चेतन है, पारब्रहम सभ अंदर कंम कर रिहा है, स़बद गुरू है पारब्रहम सचखंड दी इछा स़कती है पारब्रहम।

"जितु जितु घरि राखै तैसा तिन नाउ॥ – जिंने हिरदे ने सभ विच पारब्रहम है, अंतर आतमा दी आवाज़ है, जिस जिस जोनी विच जीव आतमा रखी है वैसा ही गिआन दिंदा है उहनूं, प्राइमरी सकूल नूं प्राइमरी वाली ते सैकंडरी सकूल नूं अगे दी पड़्हाई है। यूनीवरसिटी विच होर अगे दी पड़्हाई है,ओवें मनुखा जनम सब तों उचा है, बाकी थले दीआं कलासां ने, जिंने वी जीव ने सारे ही चेले प्रवाण करे होए ने, आप गुरू है हुकम, स़बद गुरू है, पारब्रहम है, तिनि चेले परवाणु, लिखिआ वी है।

"पसरिओ आपि होइ अनत तरंग ॥ लखे न जाहि पारब्रहम के रंग ॥ – आप उहदा पसारा अनेक तर्हां दे गिआन हो के पसरिआ है, वख वख तर्हां दी तरंग है, इको तर्हां दी इछा नहीं है साडी, अनत तरंगां ने, जैसा कंम जिसतों कराउणै वैसा फुरना पैदा कर दिंदा है, इसे करके पारब्रहम दे बेअंत तर्हां दे रंग ने, लखे नहीं जा सकदे, किसे नूं किसे कंम, किसे नूं किसे धंदे लाइआ होइऐ, हरेक अलग तरीके नाल सोचदा है। सभ दे फुरने वख वख ने, सुभाअ वख वख ने।

"जैसी मति देइ तैसा परगास॥ पारब्रहमु करता अबिनास॥

जैसी मत दिंदै किसे नूं, वैसा परगास हो जांदा है, जो अंदर गिआन हो रहिआ है, ओहदे कोलों आ रहिआ है। कोई किसे विस़े दा अधिऐन कर रहिआ है, कोई होर पड़्हाई कर रहिआ है, रूची वी उसे ने पैदा करी है। अनत तरंग ने नां, पारब्रहम करता है, उह तां हमेस़ा ही रहिंदा है। अबिनासी है। सकूल तां ओथे ही रहिंदा है। विदिआरथी पड़्ह पड़्ह अगे जाई जांदे ने, पारब्रहम तां सदा है, जीव जोनीआं बदलदे रहिंदे ने, जिहड़ा फेल्ह हो गिआ उह ओथे ही रहिंदै, जीवां दा सरीर नास़ हो जांदा है। पर स़बद गुरू लगातार है, सभ जाणदा है। कौण लाइक है ते कौण नालाइक।

असल विच हर जीव अंदर ही उह है पर मन (अगिआनता/ मनमति) कारण दिसदा नहीं "पूरन ब्रहमु रविआ मन तन महि आन न द्रिसटी आवै॥ नरक रोग नही होवत जन संगि नानक जिसु लड़ि लावै॥। दिसदा भगतां नूं है, उहनां नाल विचार वी करदा। पातिस़ाह आखदे "सुंन समाधि गुफा तह आसनु॥ केवल ब्रहम पूरन तह बासनु॥ भगत संगि प्रभु गोसटि करत॥ तह हरख न सोग न जनम न मरत॥" भगत उह है जिसने मन जित लिआ मार दिता "मन मारे बिनु भगति न होई ॥२॥ हुण जिसनूं हरख (खुस़ी) सोग (दुख) बराबर दिसदे ने हुकम दिसदा है। कई केवल आखण नूं कह दिंदे ने के खुस़ी नहीं करनी गम विच गम नहीं मनाउणा ते पैंदी सटे अरदासां करी जांदे हुंदे महाराज आह दे देवीं महाराज उह दे देवीं। भगतु कुझ नहीं मंगदा हुंदा भगत दी अरदास केवल हुकम विच रहण दी हुंदी। जो हो रहिआ चंगा मंदा हुकम विच हो रहिआ दिसदा हुंदा। उसदी दुनिआवी जंग वी आपणे लई नहीं हुंदी। पहिलां मन जितदा फेर जग। मन नूं जितिआं ब्रहम ने पूरन ब्रहम होणा फेर जोत दा एका पारब्रहम नाल होणा।

इक वीर ने दूजा द्रिस़टीकोण इसनूं वेखण दा भेजिआ आप जी नाल सांझा कर रहे हां। असीं अगे वी आए सवालां दे आधार ते विचार करदे रहांगे 휽�휼�

गुरा इक देहि बुझाई
Two Consciousness in the same body.

Brahm (ब्रहम. ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮) and Brahma (ब्रहमा, ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮࠾): The One-ness (१: इक) has two main components that make up the consciousness of sentient beings. The Brahm (ब्रहम, ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮) or Atam (आतम. ࠆࠤࡍ࠮, higher mind) that many sentient beings do not always connect to.

The second one is the outer consciousness Brahama (ब्रहमा, ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮࠾)  or Atama (आतमा, ࠆࠤࡍ࠮࠾ ) the identification of the self and the personality. Conceptually, this division can be considered as two opposed or contrasting aspects within the being, or the state of being divided.

Pooran-Brahm (पूरनब्रहम, ࠪࡂ࠰ࠨࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮ ): In its non- dual form the १: इक , has its outer self (ब्रहमा, ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮࠾) merged back into its inner or higher consciousness (ब्रहम, ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮). It points to the essential One-ness (wholeness, completeness). The One-ness (१: इक) now exists in this state through the contemplation (जपु) through the Spiritual Wisdom of Gurmat or Veds.

Paarbrahm (पारब्रहम, ࠪ࠾࠰ࠬࡍ࠰࠹ࡍ࠮): The non-dual human consciousness is part of universal nature or consciousness through the Word, It is also known as Macro Cosmic Reality the omnipresence and omnipotent. It refers to the big picture, the Creator, which is nothing but a Micro unity to form Macro Cosmic Reality, and this reality is beyond words and concepts.

Note: The word Atma (आतमा) as per Gurmat or Veds is an indicative of ignorance or darkness. Hence the word "Parmatma (परमातमा) will indicate extreme ignorance.

Hence you will never find the usage of word Parmatma (परमातमा) in Gurmat or Veds.

This word comes from the Vedanta Philosophy and is widely used in Upanishads who became known to larger population than Veds.

ब्रहम गिआनी = जोति
परमेसुर = सबदु गुरू

पउड़ी ॥
तखति राजा सो बहै जि तखतै लाइक होई ॥
जिनी सचु पछाणिआ सचु राजे सेई ॥
एहि भूपति राजे न आखीअहि दूजै भाइ दुखु होई ॥
कीता किआ सालाहीऐ जिसु जादे बिलम न होई ॥
निहचलु सचा एकु है गुरमुखि बूझै सु निहचलु होई ॥६॥

राजा Singular जोति
पूरनब्रहम सचु राजे Collective noun.
परमेसर सबदु गुरू

भूपति = जीव

Read: कालु अते अकालु (Kaal and Akaal) ἓ Basics of Gurbani


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