Source: ਗੁਰਬਾਣੀ ਮੁਤਾਬਿਕ ਜੀਵ

गुरबाणी मुताबिक जीव

गुरबाणी मुताबिक इह सभ जीव ने ?

May be an image of text that says 'अंडज Born of Eggs गुरबाणी मुताबिक इह सभ जीव हन जेरज = Born Of Womb सेतज Born of Moisture उतभुज= Born of Earth'

अंडज जेरज सेतज उतभुज सभि वरन रूप जीअ जंत उपईआ ॥ ( 835 )
जे असी मास खाण नू पाप मंनदे आ ,,,,तां सभ तो पहिला सानू ४ श्रेणिआ विच आउंदे जीव खाणे छडणे पैणगे ,,,,,, इस ळई गुरमत अनुसार जीव हतिआ तो कोई वी नही बच सकदा,,,,,,,,, ????,,,,
अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥

” अंडज ” अंडे तों पैदा होण वाले जीव,, ,,
” जेरज ” जिओर तों पैदा होण वाले,,,
” सेतज ” मुड़्हके तों पैदा होण वाले,,,
” उतभुज ” धरती विचों उगण वाले,,,

“घटि घटि “हरेक घट विच,,उस नूं चौहां खाणीआं दे जीवां विच हर हिरदे ( घट ) विच प्रभू दी ही जोति समाई दिसदी ए,,,,,,,,,

जे तुसीं जीव हतिआ तो डरदे हो ? जीव आतमा तां पोदिआं ( रुखां ) च वी ए ,,,,,
( जीव आतमा अमर है इह मरदी नही हुंदी ),,,जो सानू सिखिआ दे दिती असी वी ओहि मंनी बैठे आ,,,जे असी पाप मंनदे आ फिर ते इथो तक कि ,,,,,,

गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीड़ा होइ ॥
गोहे ते, लकड़ी, अंदर, वी कीड़ा हुंदा है ,,,,,,जो रोज खाना पकाउण वासते वरतदे आ,,,,,,
जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥
जितने वी दाणे ने खाण योग , बिना जीव आतमा तो नही हन ,,,,,,,,,,,
सो , गुरमत अनुसार दाणिआं विच वी जीव आतमा है ।
गुरमत सभ श्रेणिआ च जीव आतमा मंनदी ए,,,,,
अंडज जेरज सेतज उतभुज सभि वरन रूप जीअ जंत उपईआ ॥

भाव ,,,आपे अंडज जेरज सेतज उतभुज आपे खंड आपे सभ लोइ ॥

सो जे तुसीं मास खाण नू जीव हतिआ नाल मिलाउंदे ओ | तां सभ तो पहिला तुहानू ४ श्रेणिआ विच आउंदे जीव खाणे छडणे चाहीदे ने | असीं कोई पंडित नही , बोधी या जैनी, जिहना नू प्रमेशवर दी जोत बारे कोई गिआन नही ते वाधू दे करमकांडा , भरमां ते धारनावा च फसे होए ने , इथो तक कि जीव हतिआ तो बचण लई मुंह ते कपड़ा बंनदे ने ते दंद वी साफ़ नही करदे कि दंदा विचले जीव ना मर जाण | सो गुरमत अनुसार जीव हतिआ तो कोई नही बच सकदा | जीव हतिआ कहि के मास दा विरोध करन वालेआं नू सोचणा चाहिदा है कि की गुरमत अनुसार ओह आप जीव (आतमा) दी हतिआ हो ही न्ही सकदी ,,,मरदा ते सरीर ए आतमा (जीव) न्ही मरदा ??????
चार खाणीआं आदि ग्रंथ विच आई हन, अते चारां बारे दसम ग्रंथ विच ज़िकर है। दोनो ग्रंथ इस गल उते खड़े हन कि इह प्रभ की किरति है।

“आदि ग्रंथ साहिब जी”휽�
अंडज जेरज उतभुज सेतज तेरे कीते जंता ॥ – ५९६, मः 1
अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥ ११०९, मः 1
आपे अंडज जेरज सेतज उतभुज आपे खंड आपे सभ लोइ ॥ ६०४, मः 4
अंडज जेरज सेतज उतभुजा प्रभ की इह किरति ॥ ८१६, मः 5
अंडज जेरज सेतज उतभुज सभि वरन रूप जीअ जंत उपईआ ॥ ८३५, मः 4
अंडज जेरज सेतज उतभुज बहु परकारी पालका ॥४॥ १०८४, मः 5
“दसम ग्रंथ साहिब जी “휽�

अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥३९४॥ – चौपई, चरित्रोपखयान
स्रिजे सेतजं जेरजं उतभुजेवं ॥ रचे अंभजं खंड ब्रहमंड एवं ॥ – बचित्र नाटक
अंड जेरज सेत उतभुज कीन जास पसार ॥ ताहि जान गुरू कीयो मुनि सति दत सुधार ॥११६॥ – रुद्र अवतार
{ हुकम दी शकती कण कण विच कंम किवे करदी है 휽�}
पर जो कहिंदे ने कण कण विच रब है ? उह गल सही नहीं है ?

ब्रहम केवल सरीरां विच है ,,,, इह सरीरा दी बणतर अंडज, जेरज, सेतज, उतभज ,स्रेणीआ तौ जीव दा अकार बणदा ए ,,,,जां ब्रहम बीज सरूप है ,,,साडा मूल चेतन ब्रहम उथे ( moisture) नमी च है । जिथे अकार ए,,ओथे भुख पिआस ते विकास है ,, जड़ ते साडा सरीर वी ए ,,पर इस च चेतन शकती कंम कर रही ए,,ज़दो चेतन शकती सरीर छड जांदी ए ,ता ,जड़्ह ए ,माइआ है ,,,,,जिवें पथर जड़ ए ,, पथर विच चेतन ब्रहम नहीं है । जो मंनदे ने कि पथर च वी जीव हुंदा ओहनां नू जवाब गुरबाणी चो ही मिल जावेगा,,,,,,,
जो पाथर कउ कहते देव ॥ ता की बिरथा होवै सेव ॥ जो पाथर की पांई पाइ ॥ तिस की घाल अजाई जाइ ॥१॥ (1160)

जे नौनवेज खाणा जीव हतिआ है तां फेर तां कुछ वी ना खाओ। भुखे ही रहो सारी जिंदगी। निराहार हो के जीओ। दुध दहीं ‘च बहुत सारे बैकटीरीआ हुंदे हन। जो कि तुसीं लोक खा जांदे हो। की आह जीव हतिआ नहीं?आसा दी वार ‘च लिखिआ।”जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ॥””पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ॥”(अंक : 472)पहिला जीव तां सगों पाणी है।जीहदे नाल हर कोई हरिआ भरिआ हो रिहा।पाणी पीणा वी छडो फेर।

अंडज जेरज सेतज उतभुज घटि घटि जोति समाणी ॥जीव चारे स्रेणीआ तौ पैदा हुंदे ने , अंडे तौ जेरज तौ उतभुज स्रेणी , पेड़,पौदे विच वी समान जोत है।जिमी जमान के बिखै, समसत एक जोति है ॥न घाट है, न बाढ है, न घाट बाढ होत है ॥उह १ परमेस़र जोति सरूप किसे वी जीव आतमा धरती ते अकास च रेहण वालिआ च घट वध नहीं है उह सभ अमीर गरीब पस़ू पंछी आदि जीवा विच इक समान समाइआ होइआ है ऐसा नहीं है कि १ परमेस़र जोत रूप किसे विस़ेस़ सरीर देही हाथी जा कीड़ी अंदर बहुत वध घट वध आकार विच होवे , ऐसा वी नहीं है कि उह १ परमेस़र जोत रूप जीवा अंदर वधदा घटदा है उह सभ विच इक समान निरंतर वरत रिहा है

मात पिता की रकतु निपंने मछी मासु न खांही ।। कि जिने वी हा,, असी सभ त मां ते पिउ दी रत तों ही पैदा होए हां,,,,हुण असी सिख विदवान पंडित दे पिछे लग कि मछी आदिक दे मास तों परहेज़ करदे हन ,,भाव, मास तों ही पैदा हो के मास तों परहेज़ करन दा कीह भाव? पहिलां भी तां मां दे गरभ च पिउ दे मास बीज तों ही सरीर बणिआ है,,,हुण वी आतमा मास दे सरीर च ही रेहदि ए ,,,।इसत्री पुरखै जां निसि मेला ओथै मंधु कमाही ॥जो बाहर धरमी बनण दा नाटक करदे कि मास दे खिलाफ ने जो वी सिख विदवान पंडित (फिर), जदों रात नूं ज़नानी ते मरद इकठे हुंदे हन तदों भी (मास नाल ही) ” ओथै मंधु कमाही “(भाव, भोग) करदे ने,,,,भाव मास तौ ही स्रिसटी पैदा हुंदी ए मास तौ नफरत करदा बंदा,,,सरीर वी मास दा इ ए जिस च जीव आतमा रेहदि ए,,,,सरीर आतमा दा घर ही जद मास दा फिर मास तौ नफरत किउ करदे ने विदवान पंडित सिखा प्रचार किउ करदे ने मासहु निंमे मासहु जंमे हम मासै के भांडे ॥.असीं सारे मास दे पुतले हां, साडा मुढ मास तों ही बझा, असीं मास तों ही पैदा होए,,,जो साडि अंतर आतमा ए ऊस दा वास ते सरीर च ए,,, जो साडी निराकारी आतमा देहि ए ओह ते बदेहि मास दे बणे सरीर च रेहदि ए,,, गिआनु धिआनु कछु सूझै नाही चतुरु कहावै पांडे ॥(मास दा तिआगी) विदवान पंडित जो सिखा च वी ने (मास दी चरचा छेड़ के ऐवें आपणे आप नूं) चतुर अखवा रिहा ,, पता हैगा पंडित नू वी की लिखीआ होइआ

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Source: ਗੁਰਬਾਣੀ ਮੁਤਾਬਿਕ ਜੀਵ