Source: ਹੁਕਮ ਗੁਰੂ ਹੈ

हुकम गुरू है

सदा सदा प्रभ के गुन गावउ ॥ सासि सासि प्रभ तुमहि धिआवउ ॥ पारब्रहम इह भुख पूरी कर सकदै..हुकम गुरू है..गिआन सारा हुकम तों आइऐ..पारब्रहम ने ही तां दसिऐ गुरबाणी राहीं जा वेदां राहीं कि अंदर है प्रभ..उहदे गुण गा…तां अंदर जुड़िऐ..हुण सही टिकाणे तों भगती मंगी है..फेर किहै कि सदा ही हुण तेरे गुण गावां..मेरा हंकार मिटिआ रहे..तूं वडा है..तूं मेरा मात पिता हैं..मेरा मूल हैं..मैं तां तेरी जोत हां..मेरा वजूद तैथों है…मन बुध कहि रहे ने इह…हुण सासि सासि तैनूं ही धिआवां..किते इह नां होवे माइआ विच फेर फस जावां…मसां निकलिआं पहिलां भवजल विचों..

चरन कमल सिउ लागै प्रीति ॥ भगति करउ प्रभ की नित नीति ॥ हिरदे विच चरन ने..हिरदे विच तेरा हुकम है..सभ कुझ ही है..ओथे मेरी प्रीत लगी रहे…बाहर माइआ वल नां जांवां…तेरी भगती करां..भगती है जुड़िआ रहिणा..आपणे आप नाल जुड़िआ रहिणा..मूल नाल जुड़िआ रहां…चेता रहे हमेस़ां…जे चेता है..धिआन है तां जुड़िआ है..जे विसर गिआ तां टुट गिआ…जुड़े रहिणा इही भगती है..जिवें हुण अंतर आतमा कहे ओही करां इह भगती है..इह भगती नित नीति भाव सारी उमर वासते मेरी नीयत विच बणी रहे..सदा तेरे ही भाणे रहां..जिवें तूं अडोल हैं ओवें मैं अडोलता नाल तेरी सरन विच बैठा रहां हिरदे अंदर…

एक ओट एको आधारु ॥ नानकु मागै नामु प्रभ सारु ॥

एक ओट..काहदी ओट..?…केवल सच दी ओट..दो ओटां नहीं रखणीआं..दूजी तां माइआ है..केवल एक ओट..एको आधार..सच ही आधार मंनणै फेर सरनै…दो घरां दा प्राहुणा भुखा रहि जांदै…दूजी ओट खतरनाक हुंदी है पर असीं दो रखीआं ने…झूठ दिसदै सारा ते सच अद्रिस़ है..इह वजह है..ऐथे माइआ दिसदी है..पर निराकारी कुझ वी नज़र नहीं आउंदा..केवल बुध नाल ही दरस़न हुंदै..इस लई नानक ने की मंगिऐ..?..नाम प्रभ सार…नाम मंगिऐ पर सार गिआन…सार गिआन उह है जो ब्रहम नाल संबंधित है।

जवन काल सभ जगत बनायो ॥
देव दैत जछन उपजायो ॥
आदि अंति एकै अवतारा ॥
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥

साडा सारिआं दा गुरू, हुकम है , हुकम ने सभ जगत बनाइआ,
आदि अंति सुरूआत तो हुकम ही गुरू है।


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