Source: ਪ੍ਰੇਮ (ਪ੍ਰੀਤ) ਅਤੇ ਮੋਹ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ

प्रेम (प्रीत) अते मोह विच अंतर

प्रेम आतमा तो हुंदा जो माया है अखा नाल दिसदी है उस वसतू नाल प्रेम नहीं हुंदा उसनाल केवल मोह हुंदा । प्रेम केवल ना दिखण वाले गुणां नाल हुंदा गुर नाल हुंदा । प्रेम दा रिस़ता अटुट हुंदा कदी घटदा वददा नहीं । मोह घट वध हुंदा । मोह दा रिस़ता लालच जान जुड़िआ हुंदा प्रेम दा रिस़ता तिआग नाल जुड़िआ हंदा । प्रेम विच बंदा आपणा सोचण तो पहिला जिस नाल प्रेम हुंदा उस बारे सोचदा। मोह भीड़ पैंदे ही मुक जांदी । जे किसे नाल प्रेम होवे बंदा उसदे सामणे आके डाल बणके खड़दा जे केवल मोह होवे तां मुसीबत पैंदे ही मैदान छड के भज जांदा । प्रेम होवे जीवण मरन तो उपर हुंदा मोह टुटदे ही रिस़ता खतम। गुरबाणी आखदी प्रेम होणा चाहीदा जिवें दुध ते पाणी दा रिस़ता । प्रेम करना आतम राम नाल परमेसर नाल हर दे नाल बाकी सब मोह है माया दे बंधन । मोह विच सुख नहीं टैंस़न हुंदी डर हुंदा वसतू दे विछोड़े दा । प्रेम विच तिआग हुंदा भरोसा हुंदा अनंद हुंदा भावें जिस नाल प्रेम होवे उह दूर होवे कोल होवे अखां तो दिसे या ना दिसे ।

हुण इह समझण दे बाद बाणी दा असली भाव समझ आउंदा

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी चात्रिक मेह ॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी चकवी सूर ॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल दुध होइ ॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी जल कमलेहि ॥

"रे मन ऐसी हरि सिउ प्रीति करि जैसी मछुली नीर ॥

"एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥

"त्रै गुण बिखिआ अंधु है माइआ मोह गुबार ॥

"पुतु कलतु मोहु बिखु है अंति बेली कोइ न होइ ॥१॥ रहाउ ॥ गुरमति हरि लिव उबरे अलिपतु रहे सरणाइ ॥

"एकस बिनु सभ धंधु है सभ मिथिआ मोहु माइ ॥१॥ रहाउ ॥

"माइआ मोह परीति ध्रिगु सुखी न दीसै कोइ ॥१॥ रहाउ ॥

To be continued…


Source: ਪ੍ਰੇਮ (ਪ੍ਰੀਤ) ਅਤੇ ਮੋਹ ਵਿੱਚ ਅੰਤਰ