Source: ਮਹਾਕਾਲ

महाकाल

एकै महाकाल हम मानै ॥ महा रुद्र कह कछू न जानै॥

l एके महाकाल़ दा मतलब (हाकम )ए जो पारब्रहम प्रमेसर, जिस दा तिन लोक च (हुकम )चलदा ए, जिस अकाल ते काल पैदा कीता ए, ” काल अकाल खसम का कीना ” खसम ए महाकाल़ हाकम, जिस ने काल अकाल दी खेड बणा के, खंडा प्रिथमै साज कै जिन सभि संसार ॳुपाॲिअा! ! खंडे दीआ दो धारा ने, २ तरा दे हुकम पैदा कर के, काल वस ए (मन) दा हुकम विरोधी असुर ए, अकाल ( चित) जो साडा सतगुरु ए ओस दा हुकम जो प्रमेसर दा ए,  सुर ते असुर पैदा कर के स्रिसटी दी रचना कीती, ओस माहाकाल़ दी ग़ल कर रहे ने दसम पातसह, “एकै महाकाल हम मानै ”  एक महाकाल़ हाकम नू मंनिआ ए जिस अकाल सरूपी हुकम चलदा ए, “महा रुद्र कह कछू न जानै”  जिस नू महा रुदर केहदे ने अवतार होइआ दता त्रेय जो स़िव स़ंकर ए सभु  वी केहदे ने ओस बारे कुछ न्ही जाणिआ ना, असी  जे जाणिआं ए केवल ओस पारब्रहम प्रमेसर नू

 ब्रहम बिसन की सेव न करही ॥ तिन ते हम कबहूं नही डरही ॥

 ब्रहम बिसन दी सेव नही करी कदे ?, जे सेव करी वी ए ? ता  ओह वी स़बद विचार दी करी ए, ” गुर की सेवा स़बद विचार ” अपणे अंदिर ही स़बद दी विचार करनी असल ओहि सेव ए साडी, “तिन ते हम कबहूं नही डरही” केहदे असी कदे वी नही डरे ओहनां तौ जिना दा लोकी भै मंनदै ने, पंडित विदवान सी जो ओह लोका नू  देवि देवतिआ भै दिंदे सी जिवे हुण साडे सिख पंडित विदवान वी संता महपुरसा दा डर दे आम लोका नू डराउण लग जांदे ने करमकांड वल ला रहे ने अज वी लोका नू,

महाकाल कालिका अराधी ॥ इहि बिधि करत तपसिआ भयो ॥ द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥  महकाल ए हाकम कालिका ओस दा हुकम ए स़बद गुरू जिस दी अराधना करनी ए हिरदे च, त्रकुटी चो सुरित टुट के हिरदे च टिक जाणी फिर चंडी परगट हुंदी ए,,अंतर बैठ के हेमकुंट इ हिरदा ए हिवा घर साडा ओथे सुरित नू जोड़ देणा बाहरो संसार चो पुट के, इहि बिधि करत तपसिआ भयो” एस बिधी नाल़ तपसिआ करी ए दसम पातसाह ने, (ओह झूठ केह रहे ने कि चोकडा मार के अख़ा बंद कर के तपसिआ कीती ), द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥ २ तौ १ एस बिधी नाल़ असी एक होइ आ, एह रसता सानू दस के गए ने २ तौ १ होण दा


Source: ਮਹਾਕਾਲ