Source: ਕੀ ਮੰਗਣਾ ਹੈ ?

की मंगणा है ?

गुरबाणी सानूं सिखाउंदी है
कि प्रमातमा पासो दुनीआं दी स़ै मंगण नालो चंगा है
आपणे आतमा लई कुझ मंग लिआ जावे
किउकि
“किआ मागउ किछु थिरु न रहाई ॥”
कि मै दुनीआं दी किहड़ी स़ै मंगा
जद कि दुनीआं दी कोई वी स़ै सदा रहिण वाली नहीं है ἦἦἦἦ..

लोकी दसदे हन कि रावन महान राजा होइआ है
जिस दी सोने दी लंका सी “
लंका सा कोटु समुंद सी खाई ॥”
अते दसिआ जांदा है कि रावन दे लखां ही पुत पोतरे सन
पर
वेखो अज उसदे महिलां विच किते दीवा-वटी जगदा नाह रिहा।
मंगणा त सचु इकु जिसु तुसि देवै आपि।।
जितु खाधै मनु त्रिपतीऐ नानक साहिब दाति।।

सभे थोक परापते
जे आवै इकु हथि।।


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