Source: ਕੀ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਦੀ ਲਿਖਤ ਗੁਰਮਤ ਯਾ ਗੁਰਮਤਿ ਦੀ ਕੁੰਜੀ ਹੈ?

की भाई गुरदास दी लिखत गुरमत या गुरमति दी कुंजी है?

भाई गुरदास जी दी लिखत नूं गुरमति दी कुंजी आखण वालिआं नूं बेनती है के धिआन नाल सोचण के की गुरू पूरा है ? जि मंनदे हो ते इह स़ंका किऊं कि गुरू दी गल समझण लई किसे होर कोल जाण दी लोड़ है । धिआन देण के गुरमत की है ते जे मंनदे हो कि "सतिगुरू बिना होर कची है बाणी ॥ अते "इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ फेर कोई होर इस बाणी नूं जिआदा चंगी तरां किवें समझा सकदा है ?

गुरबाणी आपणी कुंजी आप है

गुरु कुंजी पाहू निवलु मनु कोठा तनु छति ॥ नानक गुर बिनु मन का ताकु न उघड़ै अवर न कुंजी हथि ॥१॥

परमेसर ने ब्रहम-गिआन दा भेद केवल भगतां नूं बखस़िआ है जे कोई इसदी नकल करे तां गुरबाणी विच लिखिआ

धुरि भगत जना कउ बखसिआ हरि अंम्रित भगति भंडारा ॥ मूरखु होवै सु उन की रीस करे तिसु हलति पलति मुहु कारा ॥२॥

सतिगुर की रीसै होरि कचु पिचु बोलदे से कूड़िआर कूड़े झड़ि पड़ीऐ ॥ ओन्हा अंदरि होरु मुखि होरु है बिखु माइआ नो झखि मरदे कड़ीऐ ॥९॥

Reference:

Second part


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