Source: ਮਾਨ, ਅਭਿਮਾਨ ਅਤੇ ਪਤਿ

मान, अभिमान अते पति

"मान अभिमान मंधे सो सेवकु नाही ॥

"सुखु दुखु दोनो सम करि जानै अउरु मानु अपमाना ॥

"आसा महला १ तितुका ॥

कोई भीखकु भीखिआ खाइ ॥

कोई राजा रहिआ समाइ ॥

किस ही मानु किसै अपमानु ॥

ढाहि उसारे धरे धिआनु ॥

"हरख सोग ते रहै निआरउ नाहि मान अपमाना ॥१॥ आसा मनसा सगल तिआगै जग ते रहै निरासा ॥

गुरबाणी अनुसार मान अपमान दी परवाह सेवक गुरमुख नहीं करदा। परमेसर भाणे उसदी रजा विच रहिंदा है । "जो दीसै सो तेरा रूपु ॥ गुण निधान गोविंद अनूप ॥ जे "सभु गोबिंदु है सभु गोबिंदु है गोबिंद बिनु नही कोई ॥ फेर मान देण वाला मान लैण वाला दोनो हीं उह आप है फिर की फरक पैंदा । नाले सच दी पूजा करन वाला परमेसर दा चाकर होवे उसनूं मान अपमान नाल की मतलब उसदे लई हर वसतू गुरप्रसाद है ।

जे दुनिआवी दठिस़टी नाल वेखीए तां मान अपमान दा मतलब लिहाज करना पैणा जे कोई गलत करे तां वी चुप रहणां पैणा फेर वी मान मिले इसदी कोई गरंटी नहीं बाणी सच दा मारग दसदी कोई लिहाज नहीं करदी । जे नानक लिहाज करदा तां जनेऊ पा लैंदा बापू दे कहण ते की फरक पैणा सी पर नहीं सच दे मारग दे नानक पातस़ाह सी कोई लिहाज नहीं कीता । कबीर ने हाथी दे पैर थले वी सच नहीं छडिआ। जे परमेसर दी चाकरी करनी सेवा करनी तां मान अपमान नहीं मनणा । जे मान देणा उसने आप देणा जे नहीं ता ना सही ।

हम भीखक भेखारी तेरे तू निज पति है दाता ॥
होहु दैआल नामु देहु मंगत जन कंउ सदा रहउ रंगि राता ॥१॥

"खरचु खजाना नाम धनु इआ भगतन की रासि ॥

नाम धनु किसे वी दुनिआवी धनु तो वढा है । दुनिआवी धनु मुक जाणा पर नाम धनु जिंना खरच करो मुकणा नहीं ते नाल जाणा


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