Source: ਮੋਹ

मोह

जो दीसै माइआ मोह कुटंबु सभु मत तिस की आस लगि जनमु गवाई ॥
इन्ह्ह कै किछु हाथि नही कहा करहि इहि बपुड़े इन्ह्ह का वाहिआ कछु न वसाई ॥
मेरे मन आस करि हरि प्रीतम अपुने की जो तुझु तारै तेरा कुटंबु सभु छडाई ॥२॥

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