Source: ਸਾਧਸੰਗਤ (SadhSangat)

साधसंगत (SadhSangat)

भई परापति मानुख देहुरीआ ॥
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥

गुरबाणी इह किह रही है के साडे अंदर ही परमेसर दा बिंद अंस़ बीज है ते मनुखा जीवन प्रापत होया है उसनूं समझण लई इसतौ बिना तेरा होर कोई करम तेरे कम नहीं आणा ते सिरफ साधसंगत नाल मिल के सिरफ परमेसर दा नाम जपणा है । कोई पापी मायाधारी ठग चोर झूठ बोलण वाला साधसंगत किवे हो सकदा । साढे कई परचारक लोकां दे इकठ नूं ही साधसंगत दसी जांदे ने आपणी गोलक लई भोलेपन विच या अगिआनता वस । असली साधू आतम राम है जिसनूं पता है के उह परमेसर दा ही रूप है जो सही गलत जाणदा है पर साडा मन अते बुध भजदे फिरदे ने । जे साधसंगत करनी है ता मन ते बुध काबू करके आतम राम दी स़रण लैणी है। "जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥ असीं परमेसर नूं बाहर भालदे हां उह ता हमेस़ा साडे नाल ही है साडा आतम राम। "हरि मंदरु एहु सरीरु है गिआनि रतनि परगटु होइ ॥ गुरबाणी ता कह रही है कि साडा सरीर हर दा मंदर है ते गिआन रतन (सोझी) मिलण ते परगट होणा । गुरबाणी सानूं इही गिआन ही ता दे रही है । "बलिहारी गुर आपणे दिउहाड़ी सद वार ॥ जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार ॥१॥ गुर परमिसर दा गुण अंस़ बिंद आतम राम है जिसदी समझ आउण ते मानस तो देवते हो जांदे ने ।


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