Source: ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਨਿ ਗਤਿ ਪਾਈ

राम नाम बिनु किनि गति पाई

( स्री ); बचित्र नाटक

किते नास मूंदे भए ब्रहमचारी ।।
किते कंठ कंठी जटा सीस धारी ।।
किते चीर कानं जुगीसं कहायं ।।
सभै फोकटं धरम कामं न आयं ।।

कईआ ने नासा मूंद के समाधीआं लाईआं हन, ते कई ब्रहमचारी होए हन । कईआ ने गल विच कंठी पाई है , कईआ ने सिर ते जटा धारीआं हन । कईआं कंन चिरा के (आपणे आप नूं जोगी कहाइआ है ) , पर इह सारे धरम बिरथा हो गए , किउंकि अंत वेले कोई वी कंम नी आइआ।

गउड़ी कबीर जी ॥
नगन फिरत जौ पाईऐ जोगु ॥
बन का मिरगु मुकति सभु होगु ॥१॥
किआ नागे किआ बाधे चाम ॥
जब नही चीनसि आतम राम ॥१॥ रहाउ ॥
मूड मुंडाए जौ सिधि पाई ॥
मुकती भेड न गईआ काई ॥२॥
बिंदु राखि जौ तरीऐ भाई ॥
खुसरै किउ न परम गति पाई ॥३॥
कहु कबीर सुनहु नर भाई ॥
राम नाम बिनु किनि गति पाई ॥४॥४॥

कई प्राणी नंगे फिरदे ने परमेसर प्रापती लई कबीर जी आखदे ने कि जे नंगे फिरण नाल परमेसर मिल जांदा ता सार जंगल दे हिरन तर जाणे सी । कई प्राणी केस मुंडा के गंजे हो जांदे ने कबीर जी आखदे जे इसदे नाल परमेसर मिलदा ता सारीआं भेडां तर जाणीआ सी । कई आखदे ब्रहचारी रहिणा जे इसदे नाल परमेसर मिलदा ता सारे खुसरे तर जाचे सी। भावे नंगे फिरण जा चमचा बन लैण कोई फरक नही पैणा । जदों तक आतम राम नहीं खोजिआ परमेसर जां मुकती गति नही मिलनी ।


Source: ਰਾਮ ਨਾਮ ਬਿਨੁ ਕਿਨਿ ਗਤਿ ਪਾਈ