Source: ਅਭਿਨਾਸੀ ਰਾਜ ਤੇ ਦੁਨਿਆਵੀ ਰਾਜ

अभिनासी राज ते दुनिआवी राज

गुरमति अनसार हरेक सिख ने "गुरबाणी गुर गिआन उपदेस नाल आपणे मन ते जित प्रापत करके कदे वी ना खतम होण वाले अविनासी राज दी प्रपाती करनी है। इह ही हरेक गुरसिख दा टीचा होणा चाहीदा है।

गिआन खड़गु लै मन सिउ लूझै मनसा मनहि समाई।।

गुरबाणी विच सतिगुर जी जिवें दुनिआवी राजिआ दी दसा वारे वरनण कर रहे हन आउ विचार करदे हां।

एह भूपति राणे रंग दिन चार सुहावणा॥ एहु माइआ रंगु कसुंभ खिन महि लहि जावणा॥

सतिगुर जी फ़ुरमाण करदे हन कि भाई, इह संसारी राजिआ राणिआ दे राज रंग चार भाव थोड़ा चिर लई सोभनीक हुंदे हन। धन दोलत माइआ दा इह रंग कसुंभे दा रंग है भाव कसुंभे वांग छिन भंगर है। छिन मातर विच लहि जांदा है।

कोऊ हरि समानि नहीं राजा॥ ए भूपति सभ दिवस चारि के झूठे करत दिवाजा॥

गुरमति संसारी राजिआ नूं राजे नहीं मंनदी। साडा राजा तां इको इक हरि है। उसदे तुल कोई वी दुनिआवी राजा नहीं हो सकदा। इह दुनीआ दे सभ राजे चार दिनां दे राजे हुंदे हन। इह लोक ऐवे आपणे राज प्रताप दे झूठे विखावे करदे हन।

पउड़ी॥ भूपति राजे रंग राइ संचहि बिखु माइआ॥ करि करि हेतु वधाइदे पर दरबु चुराइआ॥

इह दुनिआवी राजे चार दिनां लई झूठीआं रंग रलीआ माणदे अते धंन दोलत दी ज़हिर नूं इकतर करदे हन। अते इस नाल पिआर पा इह होरनां दी धन दोलत चोरी करके आपणे माल धन नूं होर वधाउदे हन

पुत्र कलत्र न विसहहि बहु प्रीति लगाइआ॥ वेखदिआ ही माइआ धुहि गई पछुतहि पछुताइआ॥

इह धंन दोलत दे पुजारी आपणे लड़के अते वहुटी ते भी भरोसा नहीं करदे। वस इहना दा पिआर मोह तां सिरफ माल धन नाल हुंदा है।पर जदो इहना दे अखा साहमणे ही धंन दोलत उलटा इहना नूं ही ठग लैंदी है ।फिर अंत समे इह पछताउदे हन।

जम दरि बधे मारीअहि नानक हरि भाइआ॥

हे नानक ! अखीर ते जम दरि बधे भाव भरम विच बझिआ नूं परमेसर दे हुकम अनसार सज़ा मिलदी है। इंझ ही प्रभू नूं चंगा लगदा है ।किउके इहना ने करम ही इस तरां दे कीते हुंदे हन।

सो कहिण तो भाव सानूं इह झूठे राज विच पैण दी थां गुरमति गुरबाणी उपदेस मन विच धारण करके, गुर दी मति अनसार चल के आपणा जीवन सफल करना चाहीदा है।

दुनिआवी राज बारे गुरमति दा आदेस़ है "राजि रंगु मालि रंगु॥ रंगि रता नचै नंगु॥

राज कपटं रूप कपटं धन कपटं कुल गरबतह॥

खालसे नूंबतां आदेस़ सी "पाणी पखा पीसु दास कै तब होहि निहालु॥ राज मिलख सिकदारीआ अगनी महि जालु॥१॥ संत जना का छोहरा तिसु चरणी लागि॥ माइआधारी छत्रपति तिन॑ छोडउ तिआगि॥१॥

सगल स्रिसटि को राजा दुखीआ॥ हरि का नामु जपत होइ सुखीआ॥ लाख करोरी बंधु न परै॥ हरि का नामु जपत निसतरै॥ अनिक माइआ रंग तिख न बुझावै॥ हरि का नामु जपत आघावै॥ – जे सारी स्रिसटी दा राजा वी होवे तां वी दुखी रहिणा, हरि दा नाम (सोझी) लैके ही सुखीआ होणा।

राज कपटं रूप कपटं धन कपटं कुल गरबतह ॥

संचंति बिखिआ छलं छिद्रं नानक बिनु हरि संगि न चालते ॥१॥ पेखंदड़ो की भुलु तुंमा दिसमु सोहणा ॥ अढु न लहंदड़ो मुलु नानक साथि न जुलई माइआ ॥२॥

खालसे दा अभिनासी राज की है ते किवें मिलणा?

खालसे लई तां अकाल दा राज सदीव है ते खालसे लई दसम बाणी विच आखिआ "राजन के राजा महाराजन के महाराजा ऐसो राज छोडि अउर दूजा कउन धिआईऐ ॥३॥४२॥ – ते असीं की करदे? दुनिआवी राज भालदे।

खालसे दा अबिनासी (कदे नास ना होण वाला) राज भगतां नूं मिलिआ। इसदा उदाहरण कबीर जी दस रहे हन।

किउ लीजै गढु बंका भाई॥ दोवर कोट अरु तेवर खाई॥१॥ रहाउ॥ पांच पचीस मोह मद मतसर आडी परबल माइआ॥ जन गरीब को जोरु न पहुचै कहा करउ रघुराइआ॥१॥ कामु किवारी दुखु सुखु दरवानी पापु पुंनु दरवाजा॥ क्रोधु प्रधानु महा बड दुंदर तह मनु मावासी राजा॥२॥ स्वाद सनाह टोपु ममता को कुबुधि कमान चढाई॥ तिसना तीर रहे घट भीतरि इउ गढु लीओ न जाई॥३॥ प्रेम पलीता सुरति हवाई गोला गिआनु चलाइआ॥ ब्रहम अगनि सहजे परजाली एकहि चोट सिझाइआ॥४॥ सतु संतोखु लै लरने लागा तोरे दुइ दरवाजा॥ साधसंगति अरु गुर की क्रिपा ते पकरिओ गढ को राजा॥५॥ भगवत भीरि सकति सिमरन की कटी काल भै फासी॥ दासु कमीरु चड़ि॑ओ गड़॑ ऊपरि राजु लीओ अबिनासी॥६॥९॥१७॥(भगत कबीर जी॥, रागु भैरउ, ११६१)

"राजु हमारा सद ही निहचलु॥
किहड़ा राज है साडा जो निहचल है। जो अबिनासी है। इह उही राज है जो
"नानकि राजु चलाइआ सचु कोटु सताणी नीव दै॥

तपो राज राजो नरकἦ

नानक पातसाह ने सचु दा अबिनासी राज चलाइआ। गुरमति दुनिआवी राज नूं रेते दी कंध समझदी।
"सुपने जिउ धनु पछानु काहे परि करत मानु॥ बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है॥१॥

खालसा तां कदे दुनिआवी राज मंगदा नहीं ना ही मुकती ही मंगदा। खालसे नूं तां केवल हुकम विच चलण दी आस हुंदी "राजु न चाहउ मुकति न चाहउ मनि प्रीति चरन कमलारे॥ ब्रहम महेस सिध मुनि इंद्रा मोहि ठाकुर ही दरसारे॥१॥

जिहड़े दुनिआवी राज मंगदे ने खालसे दा नाम ला के उहनां नूं पता के खालसे दी परिभास़ा की दसी है ते सच दा निहचल राज तां पहिलां ही है ते किते नहीं जाणा।

छत्री कौण?
"छत्री को पूत हो बाम्हन को नहि कै तपु आवत है जु करो॥
"छछा इहै छत्रपति पासा॥ छकि कि न रहहु छाडि कि न आसा॥
छत्री उह है जो सच दी लड़ाई लड़दा है ते सच दा झंडा बरदार है। जो अबिनासी राज (छत्रपति पासा) वल जावे। काल पुरख की फोज़ सभ छत्री ने, जो फोज़ विच होवे उह छत्री है।

अबिनासी राज

कोऊ हरि समानि नही राजा॥
हरि जन प्रभु रलि एको होए हरि जन प्रभु एक समानि जीउ॥
सो हरि जनु नामु धिआइदा हरि हरि जनु इक समानि॥

संसारी झूठे राजे
एह भूपति राणे रंग दिन चारि सुहावणा॥
ए भूपति सभ दिवस चारि के झूठे करत दिवाजा॥१॥ रहाउ॥
एह भूपति राणे रंग दिन चारि सुहावणा॥
भूपति राजे रंग राइ संचहि बिखु माइआ॥
एहि भूपति राजे न आखीअहि दूजै भाइ दुखु होई॥
स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥

जिहड़े जमीन दे टोटिआं ते राज मंगदे ने मंगी जाण। खालसे दा राज पूरी स्रिसटी ते है ते रहेगा।

साहिबज़ादिआं नूं सुचा नंद कहिंदा थोनूं पंजाब दा राज भाग दे दिआ गे अगों बाबा फतहि सिंघ जी ने जो जवाब दिता उह गुरमति दे आधार ते सी। बाबा फतहि सिंघ जी ब्रहमगिआनी सन ते उहनां नूं पता सी के गुरमति आखदी

राज ना चाहूं मुकति न चाहऊ मन प्रीत चरन कमलारे॥

राजे सीह मुकदम कुते॥

चउधरी राजे नही किसे मुकामु॥

राजु रूपु झूठा दिन चारि ॥

राज मिलख सिकदारीआ अगनी महि जालु ॥

राज मिलख धन जोबना नामै बिनु बादि ॥१॥ रहाउ ॥

राज कपटं रूप कपटं धन कपटं कुल गरबतह॥

रतु पीणे राजे सिरै उपरि रखीअहि एवै जापै भाउ॥

राजु मालु झूठी सभ माइआ॥

कूड़ु राजा कूड़ु परजा कूड़ु सभु संसारु॥

जिस कै अंतरि राज अभिमानु॥ सो नरकपाती होवत सुआनु॥

राणा राउ राज भए रंका उनि झूठे कहणु कहाइओ॥

राजु मालु रूपु जाति जोबनु पंजे ठग॥

सवालः पर पंजाब विच सिखां नाल माड़ा होइआ, उस बारे की करीए?

इसतों मुनकर नहीं हो सकदे के पंजाब विच सिखां ते दस़दत होई। हजारां नौजवान मारे गए ने। समे दीआं सरकारां ने कोई कसर नहीं छडी। कदे झूठे मुकाबले कदे चिटे दा वापार। असीं केवल आपणे बारे ही किउं सोचदे हां। समे दीआं सरकारां हथों होर किसे कीम दी नसलकुस़ी नहीं होई? हजारां सालां तों जात पात दे नाम ते, अमीर गरीब दे नाम ते अते कई होर वजह नाल लोकां नूं दबाइआ गिआ है। पर इसदा इह मतलब नहीं के असीं मंग के राज केवल आपणे लई लईए। कई मसले सिखां दे सिखां दी आपणी देन है। किउं अज इसाई धरम दा प्रचार वध गिआ पंजाब विच? अज हर पिंड विच कई कई गुरू घर हन, किआ इसदा कारण समे दीआं सरकारां हन? अज वी जात पात दे भेदभाव, धिड़ा बंदी है, वख वख जथे बणे होए हन सिखां विच किआ इसदा कारण सरकारां हन? अनेका डेरे हन ते लोग डेरिआं ते जा रहे हन किआ इसदा कारण सही प्रचार ना होणा नहीं है? बाटे वखरे, मरिआदावां वखरीआं सरकारां ने कीतीआं? भाई बाणी दा फुरमान है "फरीदा जे तू अकलि लतीफु काले लिखु न लेख॥ आपनड़े गिरीवान महि सिरु नींवां करि देखु॥६॥ असीं कदे आपणे गिरेबान विच मूह पा के वेखिआ असीं की करदे? असीं भुल गए "हम पतिस़ाही सतिगुर दई हंने हंनै लाइ॥ जहिं जहिं बहैं जमीन मल, तहिं तहि तखत बनाइ’॥३९॥

जदों तक पूरा समरपण गुरू नूं नहीं है, जदों असीं गुरमति ते खड़ गए, गुरमति दी सोझी लै, गिआन लै के सही प्रचार कीता तां सच दा राज पूरी स्रिसटी ते काइम होणा। नहीं तां राज लै वी लवांगे सोटीआं किरपानां इक दूने ते ही चलणीआं। इक झंडे थले निजी मसले जात पात खतम करके, ऊच नीच दा भेदभाव खतम करके ही अबिनासी राज दुनिआवी अते इलाही काइम होणा। प्रचार ठीक करो राज, राजे (अकाल) ने आप थाप देणा।


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