Source: ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ, ਨਵ ਨਿਧਿ ਅਤੇ ਪਰਮਪਦ

चारि पदारथ, नव निधि अते परमपद

चारि पदारथ असट महा सिधि नव निधि कर तल ता कै ॥” {अंग 1106} चारि पदारथ’ :

1. धरम (गिआन) पदारथ

2 . मुकति पदारथ

3 . नाम पदारथ

4 जनम पदारथ

गुरमति तों बिनां बाकी सभ मतां सिरफ दो पदारथां तक दी गल करदीआं हन, मुकती तक दा गिआन कराउदीआं हन, लेकिन गुरमति मुतकी जीवत मि्तक होण नूं मंनदी है, जीवत म्रितक किवें होणा है, इह गिआन गुरमति करवाउदी है, इस तों अगे दा सफर मन दीआं इछांवां मरन ते अते मरन कबूल करन ते स़ुरू हुंदा है, जदों दाल तों इक हो गिआ, मन मूल विच समा गिआ, मन दी कलपना बंद हो गई , इस तों अगे तीजा पदारथ नाम पदारथ अते चोथा पदारथ जनम पदारथ प्रापत होणा है, इही परमपद है । पहिला पदारथ ही सडा गिआन पदारथ है , जिहदे नाल सभ तोता रटण वाले कटे गए, गिआन तों बिना जीव अंन्हा है, तोता रटण नाल गिआन प्रापत होइआ होवे किसे नूं तां उह संगत विच आके भरम दे अरथ करे, कि कदों स़ुरू होइआ भरम, की हुंदा ? की इलाज है? की परहेज करना पऊ? नही तां संगत नू होर गुमराह नां करन माला वाले अते तोता रटण वाले । पहिलां ही किहा कबीर जी ने, कबीरा जहा गिआनु तह धरमु है{अंग 1372}

गिआन तों बिना जिहड़े धरम दी गल करदे ने उहना लई की किहा इह दोखो, अंन्हे हन उह, “गिआन हीणं अगिआन पूजा ॥ अंध वरतावा भाउ दूजा ॥२२॥ {अंग 1412}

फसाउण दी विधी वाले हन, भरमगिआनी हन, कामनांवा पूरीआं करन दीआं अरदासां करदे हन, दसम पातस़ाह कहिंदे ने “कामना अधीन काम क्रोध मैं प्रबीन एक भावना बिहीन कैसे भेटै परलोक सों॥

गुरमति वाले चार पदारथा दा सफर इस प्रकार है, “गिआन का बधा मनु रहै {अंग 469}” ‘गिआन पदारथ’ गुरमति दा गिआन । इहदे नाल मन बंन्हिआ जाणै, मन रुक जाणै ते मुकती मिल जाणी ऐ, कलपना तों मुकती मिल जाणी है, इह हो गिआ ‘मुकति पदारथ’ । इहतों बाअद दो पदारथ होर रहि गए हुण । गुरबाणी तां मन नूं सिरफ मारदी ही है, मन dead हो जाणै, सोचणा बंद कर देणा है एहने । सोचणा बंद कीता तां dead हो गिआ । फेर इहनूं जगाउणा कीहने है ? “राम रमत मति परगटी आई ॥{पंना 326}” उह फेर मरी होई गऊ जिहड़ी भगत नामदेव जी ने जिउंदी कीती सी , उह एथों जिउंदी होणी है, कहिण तों भाव है सुती हो मति जागणी है,कोई बाहरली गऊ दी गल नही है, अगे देखदे आं कि किवें जागदी है ,,, राम रमत मति परगटी आई” जद संतोख हो जांदा है, फिर जागदा है एहे, फेर बुधि जागदी है अंदरों, फेर गिआन जागदै संतोख तों बाअद । उह की है ? उह है ‘नाम पदारथ । फेर ‘इस तों अगे की है ? अगे है जनम पदारथ । नानक नामु मिलै तां जीवां{अंग1429}

असट महा सिधि की है??
अठ गुण ने, अठ प्रकार दी सिधि आ । ‘१’ दी पूरी समझ ‘असट सिधि’ आ । ‘ओअंकार’ की है ? इहदी समझ । “गुरमुखि असट सिधी सभि बुधी ॥{अंग 941}” गुरमुखि नूं ‘ओअंकार’ दा गिआन हुंदा है, ‘ओअंकार’ दी विआखिआ कर सकदा है । “सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी स्वैभं” सारी गुरबाणी इहनां ‘अठां’ दी ही सोझी/सिधि कराउंदी है । इह ‘१’ दी समझ है ‘अठां पखां’ तों । ‘१’ दी समझ फेर आउणी ऐ, जद ‘अठां पखां’ तों ‘१’ नूं समझ लिआ, फेर समझ आऊ कि ‘१’ की है ? फेर बुझिआ जाणै ।

नव निधि’ की है ? ‘
",,,,असट सिधि’ चों, अठ प्रकार दी सोझी चों मिलणा की है ? ‘नव निधि’ मिलणी है, ‘नवां गिआन, नवां खजाना गिआन दा’ । ‘नाम’ मिलणा एहदे चों, ‘नाम’ ही ‘नव निधि’ है “नउ निधि अंम्रितु प्रभ का नामु ॥{अंग 293}” जिहड़ा ‘नाम’ है ओही ‘नव निधि’ है ।


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