Source: ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮਾਇਆ, ਭਰਮ ਅਤੇ ਵਿਕਾਰ
"तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अंमि्त बाणी॥ कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी॥
त्रै गुण मेटे निरमलु होई ॥ – त्रै गुण माइआ दे हटदिआं निरमल (मल रहित विकार रहित) होणा।
त्रै गुण मेटे खाईऐ सारु॥ नानक तारे तारणहारु॥
गुरमुखि बोलै ततु बिरोलै चीनै अलख अपारो॥ त्रै गुण मेटै सबदु वसाए ता मनि चूकै अहंकारो॥ अंतरि बाहरि एको जाणै ता हरि नामि लगै पिआरो॥
सो निहकरमी जो सबदु बीचारे॥ अंतरि ततु गिआनि हउमै मारे॥ नामु पदारथु नउ निधि पाए त्रै गुण मेटि समावणिआ॥२॥
पूरै सतिगुरि सबदु सुणाइआ॥ त्रै गुण मेटे चउथै चितु लाइआ॥ नानक हउमै मारि ब्रहम मिलाइआ॥
तिंन गुण, तिही गुण "रज गुण”, “तम गुण”, “सत गुण कहीऐ इह तेरी सभ माइआ, तिंन गुण रजो तमो सतो, इहनां नूं माइआ मंनदी है गुरबाणी ते संसार इहनां कारण सुता पिआ है। दसम पातिस़ाह वी इह गल दसम बाणी विच लिखदे हन, खुलासा करदे हन,
रजो गुण – राज दी, पैसे दी, माइआ दी भुख। माइआ संसार विच रहिण नूं चाहीदी है इस कारण गुण है पर इसदा लालच, मोह मनुख नूं परमेसर तों दूर करदा। जो जो दिस रहिआ है उह माइआ है तां सरीर साडा माइआ दा, खांदे असीं माइआ, पहनदे माइआ हां फेर तां सब तिआगणा पैणा। जे धन पदारथ माइआ है तां गोलक विच माइआ किउं पौण नूं आखदे। आपणी कमीं नूं विकारां नूं असीं माइआ मंनदे नहीं। राज केवल सच दा है। "नानकि राजु चलाइआ सचु कोटु सताणी नीव दै॥, तपो राज राजो नरकἦ। नानक पातसाह ने सचु दा अबिनासी राज चलाइआ। गुरमति दुनिआवी राज नूं रेते दी कंध समझदी। "सुपने जिउ धनु पछानु काहे परि करत मानु॥ बारू की भीति जैसे बसुधा को राजु है॥१॥। जीव तां दरगाह दा राजा सी भरम दी नींद विच सुता पिआ आपणे आप नूं बिखारी समझ रहिआ है दुनिआवी राज ते धन मंगदा "नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी॥ अछत राज बिछुरत दुखु पाइआ सो गति भई हमारी॥। कबीर जी आखदे आह धन दौलत कठी करी जांदा कदे नाल वी कोई लैके गिआ "कहत कबीर सुनहु रे संतहु अनु धनु कछूऐ लै न गइओ॥ आई तलब गोपाल राइ की माइआ मंदर छोडि चलिओ॥। सानूं तां इतना वी समझ नहीं लगिआ के "घर महि धरती धउलु पाताला॥ घर ही महि प्रीतमु सदा है बाला॥ सदा अनंदि रहै सुखदाता गुरमति सहजि समावणिआ॥२॥ जिथे घर = घट = हिरदा = भंडु है।
सतो गुण – सचिआरा होणा सी। हुकम मंनणा सी। सत (सच) दा झंडाबरदार होणा सी इस लई इसनूं गुण कहिआ पर सतो गुण विकार है जदों आपणे आप नूं संत, महापुरख, गिआनी, विदवान कहाउण दा चा पै गिआ लालच हो गिआ। लोग मैनूं धरमी समझण। लीड़े पा के, बाणे पा के, चोले पा के आपणे आप नूं लोकां तों उचा समझणा। दूजिआं नूं नीवां समझी जाणा। सतों गुण जदों अहंकार दा रूप लै लवे। साडी परमेसर नाल लिव छुटी तां साडा जनम होइआ, जनमत माइआ ने आपणे मोह विच फसा लिआ। "लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ॥ एह माइआ जितु हरि विसरै मोहु उपजै भाउ दूजा लाइआ॥। केवल धरमी दिसण नाल जां करम कांड नाल धरमी नहीं हो जांदे। इस नाल लोकां नूं ता मूरख बणाइआ जा सकदा है अकाल नूं नहीं।
तमो गुण – काम गलत नहीं है। इसनाल स्रिस़टी चलदी है। गुरां दे भगतां दे निआणे वी होए ने। इह संसार दे विच विचरण लई परमेसर दा रचिआ तरीका है। इस लई घर बार छड के जंगलां नूं जाण दी मनाही है सिखी विच। बाणी आखदी "बिंदु राखि जौ तरीऐ भाई॥ खुसरै किउ न परम गति पाई॥३॥ जे बिंद रखण नाल ब्रहमचारी रहण नाल पार उतारा हुंदा तां खुसरे परमगत पा जाणे चाहीदे सी। पर जदों इह सरीर दी भुख वास़ना बण जावे, सरीर नाल मोह कारण कोई मोटा पतला दिसे, गोरे काले दा फरक आपणे पराए दा फरक दिसे तां इह तमो गुण विकार बण जांदा है बंधन बण जांदा है। "तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीति॥ कहु नानक भजु हरि मना अउध जातु है बीति॥३॥ – साडा सरीर जिस पिछे कवले होए फिरदे हां इसनूं जरा रोग है, सरीर जरदा है नसट हो जांदा है। जवानी हमेस़ा नहीं रहणी, हरि दी सोझी लै। गिआन लै उमर तेरी लंघी जांदी।
“तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥“
सच किसे इक दा सका नहीं जे कोई थिड़किआ है सच तो, पर सच सभ दा सका है जो सच ते खड़्हा है पहिरा दे रिहा है। गल की हो रही है, कूड़ है तिंन गुण माइआ, जो माइआ तों बाहर है ओह है सच, है तां असीं सारे ही सच दे, सच खसम है सभ दा, पर जो माइआ विच फसे हन, मनों विसारे होए ने सच ने, सुते पए ने, जीवन बतीत हो रहे ने, पर जा रहे ने विनास़ वल, दो घट गिआन अंदर जावे तां अख खुल्ह सकदी है। "नींद विआपिआ कामि संतापिआ मुखहु हरि हरि कहावै॥ बैसनो नामु करम हउ जुगता तुह कुटे किआ फलु पावै॥ – मन दी बेहोस़ी या अगिआनता वाली नींद, किसे अखर रटण नाल नहीं टुट सकदी। केवल ओचे दरजे दी लगातार होण वाली सबद वीचार ही, मन नूं इस गहिरी नींद विचों जगा सकदी है।
“कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी॥” इह तत गिआन कौण पा सकदा है, सिंमरतीआं मंनण वाले नहीं, विदवानां नहीं, "राज करेगा खालसा कहण वाले नहीं, इहनां विचों कोई वी नहीं, ओह पावेगा जिस नूं अनदिन (हर वकत) हिरदे विच मूल नाल लिव लग जावे, दीवाना हो गिआ है स़बद विचार दा, गुरबाणी दे हीरे रतनां दी भुख है, भरम मिटा रिहा है स़बद विचार नाल जाग के, पहिलां तिंन गुणां विच सुता सी, हुण उठ गिआ, "ति्गुण अतीत हो गए", जागिआ होइआ जी रिहा है, सच बोलेगा जो बोलेगा, जगा वी सकदा है होरां नूं "गुरु सतिगुरु बोहलु हरि नाम का वडभागी सिख गुण सांझ करावहि॥ पर सुते होए लोक उसनूं पागल ही कहिंदे हन। गुरबाणी दा फुरमान है "जाग लेहु रे मना जाग लेहु। कहा गाफल सोइआ॥। दीवाना होणा पैंदा है नानक वांग,
“गुरमुखि जागै नीद न सोवै॥“
गिआन होणा जागणा है, मन मार देणा जागणा है। भरम दी नींद अगिआनता दी नींद है। पर गुरमुख गुणां नूं मुख रखण वाला जागदा है जीवन भर, जो सौदा लैण आइआ है ओही कमाई करदा रहिंदा है,
“जा कउ आए सोई बिहाझउ॥
तिंन गुणा वाला बज़ार ही तिआग दिता, पैरां विच रुल रिहा है उहदे जो पहिलां सिर ते बोझ सी,
“इआ संसारु सगल है सुपना॥“
सुपना तां सुतिआं वासते है, जागे वासते नहीं। सुते नूं सुपना सच लग रिहा सी, कुझ कु दी अख खुल्ह रही है गिआन दी बूंद नाल, कुझ जाग पए हन,
“देखौ भाई ग्पान की आई आंधी॥“
गिआन दी तेज़ हवा नींद उडा लै गई। माइआ दी कोठी तों सिर बाहर कढो, गिआन दी आंधी तां वग ही रही है॥
“नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी॥ अछत राज बिछुरत दुखु पाइआ सो गति भई हमारी॥“
“संसा इहु संसारु है सुतिआ रैणि विहाइ॥“
“तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी॥ गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अंम्रित बाणी॥“
तिही गुणी = त्रै गुण माइआ (रजो, तमो, सतो)। दरगाह दे नरपति (राजे) त्रै गुण माइआ दी नींद विच सुते पए हां असीं सारे।
"जे लख इसतरीआ भोग करहि नव खंड राजु कमाहि॥ बिनु सतगुर सुखु न पावई फिरि फिरि जोनी पाहि॥३॥ हरि हारु कंठि जिनी पहिरिआ गुर चरणी चितु लाइ॥ तिना पिछै रिधि सिधि फिरै ओना तिलु न तमाइ॥४॥ जो प्रभ भावै सो थीऐ अवरु न करणा जाइ॥ जनु नानकु जीवै नामु लै हरि देवहु सहजि सुभाइ ॥५॥२॥३५॥ –
तिल ना तमाए – तिल समान (माड़ी जही वी) तमो ना होवे। "वडा दाता तिलु न तमाइ॥ वडा है दाता, उस विच तिल समान वी तमा नहीं है।
लख इसतरीआ भोग = दुनिआवी विदिआ ते मतां लैणा, किताबां पड़्ह लैणा। गुरबाणी विच इसतरी बुध लई वरतिआ गिआ है। लख दा अरथ (lakh 1,00,000) नहीं हुंदा। इह स़बद अंग्रेजां दे समे तों प्रचलित होइआ। गुरमति विच लख दा अरथ लाहा लैणा है।
नव खंड राज = माइआ ते जित, राज पाट लैणा, मकान बणा लैणा, पैसा कमा लैणा।
नाम लै = गुरमति गिआन लै
“पूरे ताल निहाले सास॥ वा के गले जम का है फास ॥३॥“
उह दुनिआवी ताल मेल वी चलाउंदा ते नाले बंदे दे साहां दी गिणती वी रखदा है।
“प्रथमे तिआगी हउमै प्रीति॥ दुतीआ तिआगी लोगा रीति॥ त्रै गुण तिआगि दुरजन मीत समाने॥ तुरीआ गुणु मिलि साध पछाने॥२॥ सहज गुफा महि आसणु बाधिआ॥ जोति सरूप अनाहदु वाजिआ॥ महा अनंदु गुरसबदु वीचारि॥ प्रिअ सिउ राती धन सोहागणि नारि॥३॥(रागु आसा, म ५, ३७०)”
सभ तों पहिला जो हउमै सी के स़ाइद मैं ही वडा गिआनी हां, मेरे कीता ही सभ ठीक है, उस नूं तिआगिआ, फिर लोगा रीत, भाव जो लोक करदे ने मैं वी ओही करांगा, उस सोच नूं तिआगिआ, फिर रज गुण, तम गुण, सत गुण दी सोच तिआगी – गुणां नूं मुख रखदिआ जोत दे अकाल दे, काल दे गुण किहड़े हन समझिआ, ओहना तुरीआ गुणा नूं पहिचाणिआ। फिर सहिज गुफा विच मन नूं बिठा दिता – इसे नूं सहिज जोग कहिंदे हन – इसे अवसथा विच अनहद बाणी ( नाम / गिआन तों सोझी ) प्रगट हुंदी। इह अनंद दी अवसथा दा गुर स़बद, गुर उपदेस़ दी विचार नाल पता लगदा है – इसे स़बद नाल बुध रची हुंदी अनंद माणदी है।
अकाल दे गुणां नूं समझिआ के
“नमसतं अनामे ॥नमसतं अठामे ॥३॥४॥“
नमसकार करो ओस पारब्रहम प्रमेसर नू जिस दा कोई नां नहीं है ओह अनामे है। नमसकार है ओह बिना नां तौ बिना थां तौ जो आठामे जिस कोई पता टिकाणा नही ओस दा कोई नां कोई था नहीं। ओस दे रहण दा कोई पका पता नहीं दस सकिआ। “नमसत्वं अरूपे॥“, जिस दा कोई बाहर रूप न्ही, बिना सरीर तौ अजूनी है, ना ओस दा रंग़ रूप रेख अकार है, ओह "त्रै गुण ते प्रभ भिंन" है, ओह संसार ते तिंने गुणा तौ रज गुण तम गुण सत गुण दे विच नहीं है, जिस दा अकार दितना विराट है, कि तिन लोक ओस दे विच ने, “नमसत्वं अकाले॥” नमसकार है, ओस प्रभू नूं, जो अकाल है, काल दे समे दे चकर विच नही है, "चक्र चिहन अरु बरन जाति अरु पाति नहिंजे॥ तौ अलग है निरलेप है, तिन लोक विच जो चकर चल रिहा है, ओस तौ परे है, जाति और पाति तौ दूर जनम मरन दे विच नहीं है, ओह, “नमसतं अपारे ॥७॥८॥नमसतं अगाधे ॥६॥७॥” ओह अपार है अगाध है जिस दा पार नही पाईआ जा सकदा पकड तौ परे है ओह साडि बुधि ओस दा वरनण नहीं कर सकदी, “नमसतं न्रिदेसे॥” कोई देस़ नही है ओस दा, के असी वीज़ा लवा के, ओस पारब्रहम दे देस़ चले जवांगे, “रूप रंग अरु रेख भेख कोऊ कहि न सकति किह ॥” असल विच ओस बारे बिआन नही कीता जा सकदा ओस दा कोई भेख नही है ओह अभेख है साडे वरगा सरीर रूप रंग़ रेख नही है, ओस बारे कुछ नही किहा जा सकदा, “कि सरबत् देसै॥ कि सरबत् भेसै॥ कि सरबत् कालै॥ कि सरबत् पालै॥” उह है सारे ही देस़ ओस दे ने, सारे ही भेस ओस दे ने, ओह सभ दा काल है, जिस ने अकाल पैदा कीता अकाल दा वी महाकाल़ है, "काल अकाल खस़म का कीना॥, ओह पारब्रहम आप महाकाल़ है खसम है जिस ने काल (हुकम) पैदा कीता होइआ, जो सभ दी पालणा करदा है, “सिव सकति आपि उपाइकै करता आपे हुकम वरताहै॥(रामकली म:३ आनंद)“, स़िव कोई आदमी नही हुकम है पारब्रहम प्रमेसर दा, जो स़कती है तिन लोक विच हुकम चल रिहा है, संसार इहो जिहा कोई बंदा नहीं हो सकदा जिस दा तिन लोक विच हुकम चलदा होवे, “देहि स़िवा बर मोहि इहै” जिस तौ दसम पातसह वर मंग रहे ने ओही स़िव ( हुकम) है पारब्रहम प्रमेसर दा।
त्रै गुण माइआ बिनसि बिताला॥२॥ – अरथ त्रै गुण माइआ बिनास दा कारण बणदी है ते जीव बेताला (भटकिआ) फिरदा है।
माइआ मोहु जगतु सबाइआ॥ त्रै गुण दीसहि मोहे माइआ॥गुरपरसादी को विरला बूझै चउथै पदि लिव लावणिआ॥१॥ – माइआ धन दौलत नहीं है। आपणे आप विच खीसे विच पए पैसे निरजीव हन, सोना, चांदी घट घोड़ा गडी सब आपणे आप विच माइआ नहीं है। माइआ है मन दा विकार, इहनां नाल जुड़ाव, इहनां वसतूआं नाल प्रेम। मन दी खेड है आपणे उपर दोस़ नहीं लैणा चाहुंदा इस लई वसतूआं नूं दोस़ दिंदा है। नाल कुझ लैके नहीं आए सी "या जुग महि एकहि कउ आइआ॥ जनमत मोहिओ मोहनी माइआ॥ आए सी एक (एक मति) होण लोई पर फस गए लालच विच। लालच मन (अगिआनता) दा सुभाव है। जदों मन नूं गिआन खड़ग ने मार दिता तां माइआ विच रहिंदिआं निरलेप हो जाणा "कहै नानकु गुरपरसादी जिना लिव लागी तिनी विचे माइआ पाइआ ॥२९॥, जिहनां नूं गुरबाणी तों सोझी (गुरप्रसाद) मिल गिआ उहनां दी लिव परमेसर दे हुकम नाल लगणी फेर उहनां माइआ विच रहिंदिआं परमेसर प्रापती कर लैणी। सनातन मत विच माइआ दा तिआग करन नूं कहिआ पर इहनां नाल गल नहीं बणदी। "एऊ जीअ बहुतु ग्रभ वासे॥ मोह मगन मीठ जोनि फासे॥ इनि माइआ त्रै गुण बसि कीने॥
गुरबाणी दा फुरमान है
कंचन के कोट दतु करी बहु हैवर गैवर दानु॥ भूमि दानु गऊआ घणी भी अंतरि गरबु गुमानु॥ राम नामि मनु बेधिआ गुरि दीआ सचु दानु॥४॥ मनहठ बुधी केतीआ केते बेद बीचार॥ केते बंधन जीअ के गुरमुखि मोख दुआर॥ सचहु ओरै सभु को उपरि सचु आचारु॥५॥
कंचन (सोने) दे कोट (महल) भावें कितने वी दान करदे, गउआं, भूमी तां वी तेरे अंदरों दानी होण दा गुमान (हंकार) नहीं जाणा। राम नाम (राम दे गिआन) ने ही मनु नूं भेदणा मारना है। कोई मनहठ नाल परमेसर प्रापती दा दाअवा करदे ने किसे नूं मनहठ नाल प्रापती नहीं हुंदी। "मनहठि किनै न पाइआ करि उपाव थके सभु कोइ॥
मनमुख चंचल मति है अंतरि बहुतु चतुराई॥ कीता करतिआ बिरथा गइआ इकु तिलु थाइ न पाई॥ पुंन दानु जो बीजदे सभ धरम राइ कै जाई॥ बिनु सतिगुरू जमकालु न छोडई दूजै भाइ खुआई॥
मनमुख चतुराई करदे फिरदे ने, पुंन दान बीजदे ने अरथ दान करके बदले विच आस रखदे ने उह सब जमां (विकारां) दे पटे भोगदे ने। सतिगुरू (सचे दे गिआन) तों बिनां जम काल नहीं छुटदा। ते सचे दे गुण हासल हुंदे ने बाणी दी विचार तों।
"रागु केदारा बाणी कबीर जीउ की ॴ सतिगुर प्रसादि॥ उसतति निंदा दोऊ बिबरजित तजहु मानु अभिमाना॥ लोहा कंचनु सम करि जानहि । ते मूरति भगवाना॥१॥ तेरा जनु एकु आधु कोई॥ कामु क्रोधु लोभु मोहु बिबरजित हरि पदु चीन्ह्है सोई॥१॥ रहाउ ॥ रज गुण तम गुण सत गुण कहीऐ इह तेरी सभ माइआ॥ चउथे पद कउ जो नरु चीन्ह्है तिन्ह्ह ही परम पदु पाइआ॥२॥ तीरथ बरत नेम सुचि संजम सदा रहै निहकामा॥ त्रिसना अरु माइआ भ्रमु चूका चितवत आतम रामा॥३॥ जिह मंदरि दीपकु परगासिआ अंधकारु तह नासा॥ निरभउ पूरि रहे भ्रमु भागा कहि कबीर जन दासा ॥४॥१॥
राज, पैसा, सोना चांदी, सरीर दी भुख, जीभ दा सुआद इह सब रस हन। इहनां दा विकार विच बदलणा कोई वडी गल नहीं है। इहनां नूं तिआग के जंगल वल नूं नहीं निकलणा पर आपणे मन नूं गिआन नाल बंनणा है "गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥। जे भरोसा होवे तां उसने जो देणा आप दे देणा जो सैल पथर विच जंत नूं रिजक बखस़ दिंदा है। बाणी आखदी "जल महि जंत उपाइअनु तिना भि रोजी देइ॥ ओथै हटु न चलई ना को किरस करेइ॥ – समुंदर विच जल विच वी जंत उपाए हन परमेसर ने। उथे किहड़ा हटु (हाट / दुकानां / बाजार) लगे जिथे जा के जीवां नूं भोजन खरीदना पैंदा ना किसे नूं किरस (खेती) करनी पैंदी है।
त्रै गुण माइआ दा असर जीव ते भरोसे दी कमीं नाल हुंदा है। जीव नूं लगदा कल पता नहीं की होणा कल लई पैसे जोड़ लवो, भरोसे दी कमीं नाल सोचदा होर कठा कर लवां। कदे रज नहीं आउंदा। जीभ दा सवाद, पैसे दा लालच। जितने वी अवगुण ने अगिआनता वल धकदे रहिंदे हन जीव नूं। जिहड़े परमेसर ने गुण सानूं आपस विच, संसार विच विचरण नूं दिते सी उह कदों त्रै गुण माइआ बण जांदे हन, मल (मन दी मैल) बण जांदी है जीव नूं पता ही नहीं लगदा। गुरबाणी विचार नाल इह मल उतरदी है, भरोसा वधदा है, डर मुकदा है, परमेसर नाल प्रेम, दूजिआं नाल प्रेम वधदा है। सारिआं विच एक खुदा दिसदा है। वैर विरोध खतम हुंदे हन। इस लई जतन करो बाणी विचारन दी। गुणां दी सांझ गुणां दी विचार राहीं ही मुकती हुंदी है। गुर सिखां नूं आदेस़ है
गुरसिखां मनि हरि प्रीति है गुरु पूजण आवहि॥ हरि नामु वणंजहि रंग सिउ लाहा हरि नामु लै जावहि॥ गुरसिखा के मुख उजले हरि दरगह भावहि॥ गुरु सतिगुरु बोहलु हरि नाम का वडभागी सिख गुण सांझ करावहि॥ तिना गुरसिखा कंउ हउ वारिआ जो बहदिआ उठदिआ हरि नामु धिआवहि॥११॥
Source: ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮਾਇਆ, ਭਰਮ ਅਤੇ ਵਿਕਾਰ