
Source: ਹੁਕਮ, ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਤੇ ਪਾਤਿਸ਼ਾਹ
हुकम तां वरत रहिआ हर वेले। इक भाणा दरगाह तों आइआ दूजा साडे मन दी इछा है "आपणै भाणै जो चलै भाई विछुड़ि चोटा खावै॥ आपणे मन दी इछा जां भाणे ते चलण दी सोच जदों हुकम नाल नहीं रलदी तां दुख मिलदे। भाणा जां इछा हुकम तों बाहर नहीं जा सकदा। असीं आख तां दुंदे हां के असीं भाणा मंन रहे हां जां हुकम समझ लिआ जां मंनदे हां पर पातस़ाह आखदे हुकम मंनण नाल की हुंदा "हुकमु मंने सोई सुखु पाए हुकमु सिरि साहा पातिसाहा हे ॥३॥। असल विच हुकम मंनण दी थां असीं करता भाव विच फसे होए हां जदों तक संपूरण भरोसा ना होवे करता भाव खतम ना होवे उदों तक हुकम विच रास नहीं रली। "मरकट मुसटी अनाज की मन बउरा रे लीनी हाथु पसारि॥ छूटन को सहसा परिआ मन बउरा रे नाचिओ घर घर बारि॥२॥ मरकट मुसटी अरथ बांदर नूं फड़न लई इक निके मूह दे भांडे विच अनाज पा के रसी नाल भांडे नूं बंन दिता जांदा। बांदर जदौ मुठी नाल अनाज फड़ लैंदा तां भांडे विच फस जांदा लालच कारण हथ बाहर नहीं कढ सकदा ते फेर मदारी बांदर नूं काबू कर लैंदा। उसे तरां मन ने इछांवां फड़ीआं होईआं ने लालच कारण, विकारां कारण छड नहीं रहिआ। छुटण नूं हुण संसा (स़ंका confusion) पिआ, जिस कारण बांदर नूं घर घर नचणा पैंदा। उदां ही कई स़ोभा, लोकां विच धरमी दिसण दे लालच विच, लोकां विच जथेदार, लीडर, सेवक दिसण दी इछा विच फस जांदे ने ते घर घर नचदे फिरदे ने अरथ कदे किसे दे दसे राह ते कदे किसे दे दसे राह ते तुरी जांदे ने। निज घर दरगाह दे रसते तों दूर होई जांदे ने।
पति, पाति अते पात
पात गुरबाणी समझा रही है
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद॥ केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु॥ – भाव नरिंद तक पहुंचण दे केते (अनेक) राह दसे हन। सुरत वाले सेवक जिहनां नूं नाम (सोझी) है बिअंत हन।
जो तिसु भावै सोई करसी हुकमु न करणा जाई॥ सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई॥ – जो तैनूं भाउंदा उही करदा आपणा हुकम नहीं चलाउंदा। उही पातिस़ाह है हुकम रजा विच चलण वाला। जिस नूं सिफ़त सालाह बकस़दा है उही पातिसाह है "जिस नो बखसे सिफति सालाह॥ नानक पातिसाही पातिसाहु॥
जिहड़ा सची कारे (कारज) लग गिआ उह पातिस़ाह ही है "मन मंधे प्रभु अवगाहीआ॥ एहि रस भोगण पातिसाहीआ॥ मंदा मूलि न उपजिओ तरे सची कारै लागि जीउ॥ – इह पातिस़ाही सारिआं भगतां नूं गुरूआं नूं मिली है इह वी गुरबाणी ने सपस़ट कीता है "भगत जना कंउ आपि तुठा मेरा पिआरा आपे लइअनु जन लाइ॥ पातिसाही भगत जना कउ दितीअनु सिरि छतु सचा हरि बणाइ॥ सदा सुखीए निरमले सतिगुर की कार कमाइ॥
हुकम जदों मंन लिआ ता पातिसाह बण जांदा जीव। असीं पातिस़ाह स़बद नूं नहीं समझे। बादस़ाह हुंदा है बाद (वाद/विवाद/झगड़ा) दा स़ाह (मालिक/दावेदार/हकदार) ।
लख खुसीआ पातिसाहीआ जे सतिगुरु नदरि करेइ॥ निमख एक हरि नामु देइ मेरा मनु तनु सीतलु होइ॥ -पातिस़ाही दाअवा सतिगुर दी नदर दा नाम है। चिंता मुकत होण दा ऐलान है पातिस़ाही दावा। हम पतिस़ाही सतिगुर दई हंनै हंनै लाइ॥ जहां जहिं बहैं जमीन मल तहि तहि तखत बनाइ॥
बादिस़ाह मनुख बणदा संसारी राज ते ताज नाल। पातिस़ाह बणदा मनुख मसतक भाग नाल। जो सेवा विच लग जांदा पाति (राह) पता लगण ते
सो बादस़ाह भाव बाद जितण वाला दुनिआवी राजे नूं आख सकदे। पाति हुंदा राह अते पत, पातिस़ाह दा अरथ बणदा जिसनूं दरगाह तों पत प्रापत होवे, राह दा स़ाह, राह ते चलण वाला। जिसनूं दरगाह दा राह (रसता) पता होवे जिसने दरगाह दा रसता जित लिआ होवे। बाद दे उदाहरण गुरमति विचों
"मिठा करि कै खाइआ कउड़ा उपजिआ सादु॥ भाई मीत सुरिद कीए बिखिआ रचिआ बादु॥
देही माटी बोलै पउणु॥ बुझु रे गिआनी मूआ है कउणु॥ मूई सुरति बादु अहंकारु॥ ओहु न मूआ जो देखणहारु॥२॥
सरब भूत एकै करि जानिआ चूके बाद बिबादा॥ कहि कबीर मै पूरा पाइआ भए राम परसादा॥
गिआनु गिआनु कथै सभु कोई॥ कथि कथि बादु करे दुखु होई॥ कथि कहणै ते रहै न कोई॥ बिनु रस राते मुकति न होई॥
बिनु बाद बिरोधहि कोई नाही॥ मै देखालिहु तिसु सालाही॥ मनु तनु अरपि मिलै जगजीवनु हरि सिउ बणत बणाई हे॥
पाति हुंदा पत। पातिस़ाह पत रखण वाला वी है।
हमरा बिनउ सुनहु प्रभ ठाकुर हम सरणि प्रभू हरि मागे॥ जन नानक की लज पाति गुरू है सिरु बेचिओ सतिगुर आगे॥(म ४, गउड़ी पूरबी, १७२) – इह गुरू रामदास पातिस़ाह जी महराज दा पातिस़ाही दावा है। जे पाति है तां कहि रहे हन के हमरी लज पाति गुरू है।
सतिगुरि पूरै कीनी दाति॥ हरि हरि नामु दीओ कीरतन कउ भई हमारी गाति॥ रहाउ॥ अंगीकारु कीओ प्रभि अपुनै भगतन की राखी पाति॥ नानक चरन गहे प्रभ अपने सुखु पाइओ दिन राति॥(म ५, रागु धनासरी, ६८१) – इह गुरू अरगजन देव जी महाराज दा पातिस़ाही दावा है ते इह पॲतिस़ाही भगतां नूं मिली है इस दी गवाही है।
"हमरी जाति पाति गुरु सतिगुरु हम वेचिओ सिरु गुर के ॥(म ४, रागु सूही, ७३१ – जो पातिसाही दावे रखदे ने उह सिर केवल गुर सतिगुर अगे ही भेंट करदे ने। ना के अज किसे नूं भेंट करता, चक के तुर पए कल किसे होर नूं भेंट करता। ना ही उह दुनिआवी साध, संत, गिआनी महापुरख आदी कहाउण वाले नूं सिर भेंट करदे ने। आपणे ते गुरू दे विचले फासले खतम करदे ने। केवल गुरू तों आस रखदे गिआन दी वी ते किरपा दी वी। सिर केवल इको वार भेंट हुंदा बार बार नहीं। जदों भेंट करता फेर चुकणा नहीं है। सिर भेंट करना अरथ आपणी मैं मार के गुरू नूं भेंट कर दिती हुण केवल गुरमति (गुणां दी, गुरू दी मति) ते चलणा।
मंने हुकमु सु परगटु जाइ॥
नानक हुकमु न मंनई ता घर ही अंदरि दूरि ॥
हुकमु मंनि सुखु पाइआ प्रेम सुहागणि होइ ॥१॥ – इथे बुध ने सुहागण होणा राम/हरि/जोत/मूल दा हुकम मंन के। जदों तक मन (अगिआनता) दा हुकम मंनदी दुहागण है।
गुरमुखि हुकमु मंने सह केरा हुकमे ही सुखु पाए॥
इस लई असीं हुकम तों बाहर नहीं जा सकदे। पाति (गुर दी दसी राह) ते चलांगे तां पातिस़ाही दावा मिलणा, कहण मातर नाल गल नहीं बणदी। टकराओ है मन दी इछा कारण मन दे भाणे कारण। हुकम तां इको वरत रहिआ "सभु इको हुकमु वरतदा मंनिऐ सुखु पाई॥३॥ साडी इछा साडा मन इसदे नाल राजी नहीं है इस कारण दुख भोगदा किउंके चाहुंदा तां है पर हुकम तों बाहर नहीं जा सकदा।
गुरबाणी विच इक पंकतीआं हन "जितने साह पातिसाह उमराव सिकदार चउधरी सभि मिथिआ झूठु भाउ दूजा जाणु॥ हरि अबिनासी सदा थिरु निहचलु तिसु मेरे मन भजु परवाणु॥ – इहनां विच उह दुनिआवी मनुख जो संसारी गलां करदे रहे, गिआन तों दूर हुंदे होए वी आपणे आप नूं पातस़ाह अखवाउंदे रहे। पातसाह दा अरथ नहीं समझे पर पातिस़ाह बणन दी लालसा रखदे सी। इस स़बद विच इह दुनिआवी पातिसाह उमराव सिकदार चउधरी दी गल है। भगत साहिबान ते गुरु साहिबान अबिनास़ी राज दे पातिसाह हन।
"मंदर मेरे सभ ते ऊचे॥ देस मेरे बेअंत अपूछे॥ राजु हमारा सद ही निहचलु॥ मालु हमारा अखूटु अबेचलु॥२॥। गुरबाणी इहनां नूं वी हुकम तों बाहर नहीं दसदी। इक भरमे इक भगती लाए सारा खेल हुकम दा है। आखदे "जितने पातिसाह साह राजे खान उमराव सिकदार हहि तितने सभि हरि के कीए॥ जो किछु हरि करावै सु ओइ करहि सभि हरि के अरथीए॥ सो ऐसा हरि सभना का प्रभु सतिगुर कै वलि है तिनि सभि वरन चारे खाणी सभ स्रिसटि गोले करि सतिगुर अगै कार कमावण कउ दीए॥ हरि सेवे की ऐसी वडिआई देखहु हरि संतहु जिनि विचहु काइआ नगरी दुसमन दूत सभि मारि कढीए॥ हरि हरि किरपालु होआ भगत जना उपरि हरि आपणी किरपा करि हरि आपि रखि लीए॥ अते "रागु गोंड असटपदीआ महला ५ घरु २॥ ॴ सतिगुर प्रसादि॥ करि नमसकार पूरे गुरदेव॥ सफल मूरति सफल जा की सेव॥ अंतरजामी पुरखु बिधाता॥ आठ पहर नाम रंगि राता॥१॥ गुरु गोबिंद गुरू गोपाल॥ अपने दास कउ राखनहार॥१॥ रहाउ॥ पातिसाह साह उमराउ पतीआए॥ दुसट अहंकारी मारि पचाए॥ निंदक कै मुखि कीनो रोगु॥ जै जै कारु करै सभु लोगु॥२॥ संतन कै मनि महा अनंदु॥ संत जपहि गुरदेउ भगवंतु॥ संगति के मुख ऊजल भए॥ सगल थान निंदक के गए॥३॥ सासि सासि जनु सदा सलाहे॥ पारब्रहम गुर बेपरवाहे॥ सगल भै मिटे जा की सरनि॥ निंदक मारि पाए सभि धरनि॥४॥ जन की निंदा करै न कोइ॥ जो करै सो दुखीआ होइ॥ आठ पहर जनु एकु धिआए॥ जमूआ ता कै निकटि न जाए॥५॥ जन निरवैर निंदक अहंकारी॥ जन भल मानहि निंदक वेकारी॥ गुर कै सिखि सतिगुरू धिआइआ॥ जन उबरे निंदक नरकि पाइआ॥६॥ सुणि साजन मेरे मीत पिआरे॥ सति बचन वरतहि हरि दुआरे॥ जैसा करे सु तैसा पाए॥ अभिमानी की जड़ सरपर जाए॥७॥ नीधरिआ सतिगुर धर तेरी॥ करि किरपा राखहु जन केरी॥ कहु नानक तिसु गुर बलिहारी॥ जा कै सिमरनि पैज सवारी॥८॥१॥२९॥
अगनि न दहै पवनु नही मगनै तसकरु नेरि न आवै॥
राम नाम धनु करि संचउनी सो धनु कत ही न जावै॥१॥
हमरा धनु माधउ गोबिंदु धरणीधरु इहै सार धनु कहीऐ॥
जो सुखु प्रभ गोबिंद की सेवा सो सुखु राजि न लहीऐ॥१॥ रहाउ॥
इसु धन कारणि सिव सनकादिक खोजत भए उदासी॥
मनि मुकंदु जिहबा नाराइनु परै न जम की फासी॥२॥
निज धनु गिआनु भगति गुरि दीनी तासु सुमति मनु लागा॥
जलत अंभ थंभि मनु धावत भरम बंधन भउ भागा॥३॥
कहै कबीरु मदन के माते हिरदै देखु बीचारी॥
तुम घरि लाख कोटि अस्व हसती हम घरि एकु मुरारी॥४॥१॥७॥५८॥ (राग गउड़ी, भगत कबीर जी, ३३६)
सिखां दा पातिस़ाही दावा
चौपई॥ दरबारै सिंघ अगयों कही॥ असीं निबाबी कद चहैं लई॥ हम को सतिगुर बचन पतिस़ाही॥ हम को जापत ढिग सोऊ आही॥ ३६॥ हम राखत पतिस़ाही दावा॥ जां इतको जां अगलो पावा॥ जो सतिगुर सिखन कही बात॥ होगु साई नहिं खाली जात॥ ३७॥ ध्रू विधरत औ धवल डुलाइ॥ सतिगुर बचन ना खाली जाइ॥ पातिस़ाही छड किम लहैं निबाबी॥ पराधीन जिह मांहि खराबी॥ ३८॥ दोहरा॥ हम पतिस़ाही सतिगुर दई हंनै हंनै लाइ॥ जहां जहिं बहैं जमीन मल तहि तहि तखत बनाइ॥ ३९॥ चौपई॥ इसी भांत बहु सिखन कही॥ हम को लोड़ निबाबी नहीं॥ पंथ छड बहयो कब उन के पाही॥ ४०॥ – (प्राचीन पंथ प्रकास़ निहंग भाई रतन सिंघ जी भंगू भाग दूजा पंना ३५-३६)
पुरातन सिंघां ने वी इही पातिस़ाही दावा कीता है। उहनां नूं पाति (नरिंध तक पहुंचण दा राह भाव हुकम मंनणा) सति (सचा) गुर (गुण) ने दसिआ है। सतिगुर तक पहुंचण दा राह है हुकम नूं मंन लैणा, समझ लैणा।
सवाल: दसम पातिस़ाह अते दसम बाणी दे विरोधी सवाल खड़ा करदे हन के दसम पातिस़ाह ने आपणे आप नूं पातिस़ाह कहि के आदि बाणी तों उलट कंम कीता है किउंके किसे भगत ने ते गुरू ने पातिस़ाही दाअवा नहीं कीता
जवाब: आदि बाणी विच वी पातिस़ाही दाअवा है ते अखौती विदवान इस दाअवे नूं देख समझ नहीं सकदे किउंकि विचारी नहीं है उहनां ने बाणी। असल विच पाति (राह) मिलण ते सिफ़त सलाह मिलण ते ही भगत दी पदवी मिलदी है। उह जिसनूं पाति भाव अकाल दे गुणां तक पहुंचण दी राह दी जाणकारी होई उहनां दी बाणी ही दरज कीती गई है। जिथे आपणे आप नूं भगतां ने गुरूआं ने दास, निमाणा कहिआ है उह पाति (राह) मिलण दी दावेदारी ही है। भगत निमाणा ते दास होइआ ही पातिस़ाही दाअवे तों बाद भाव आपणे मुरस़द तक लैके जाण वाली राह दा जदों उसनूं भेद पता लग गिआ।
दसम पातिस़ाह ने "पातिस़ाही १० लिख के गुरूआं दे पातिस़ाह होण ते मोहर ला दिती। अहंकार तां हिंदा जे आपणे आप नूं केवल पातिस़ाह जां "पातिस़ाह १ लिखिआ हुंदा।
जिहड़े दसम पातिस़ाह अते दसम बाणी ते किंतू परंतू करदे हन उहनां नूं हजे आदि बाणी दी वी समझ नहीं है। जे हुंदी तां वैर विरोध तिआग के धीरज नाल विचार करदे। पर जदों मन ते विरोध, गुसा, अहंकार, हउमै हावी हो जावे तां मग/पाति/राह नहीं सुणझदी हुंदी। इह उहनां नूं आदि बाणी विचों पहिलां समझ लग जांदी है।
दसम पातिस़ाह नूं पातिस़ाह कहिण मंनण तों मुनकर हन जिहड़े उहनां नूं की पता साडे लई कौण हन महाराज।
वाहिगुरू जीउ सत
वाहिगुरू जीउ हाज़र नाज़र है
नासिरो मनसूर गुरू गोबिंद सिंघ
ईज़दि मनज़ूर गुरू गोबिंद सिंघ ॥ १०५ ॥
हक रा गंजूर गुर गोबिंद सिंघ
जुमला फ़ैज़ि नूर गुर गोबिंद सिंघ ॥ १०६ ॥
हक हक आगाह गुर गोबिंद सिंघ
शाहि शहनशाह गुर गोबिंद सिंघ ॥ १०७ ॥
बर दो आलम शाह गुर गौबिंद सिंघ
ख़सम रा जां-काह गुर गोबिंद सिंघ ॥ १०८ ॥
फ़ाइज़ुल अनवार गुर गोबिंद सिंघ
काशफ़ुल असरार गुर गोबिंद सिंघ ॥ १०९ ॥
आलिमुल असतार गुर गोबिंद सिंघ
अबरि रहिमत बार गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११० ॥
मुकबुलो मकबूल गुर गोबिंद सिंघ
वासलो मौसूल गुर गोबिंद सिंघ ॥ १११ ॥
जां-फ़रोज़ि दहिर गुर गोबिंद सिंघ
फ़ैज़ि हक रा बहिर गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११२ ॥
हक रा महिबूब गुर गोबिंद सिंघ
तालिबो मतलूब गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११३ ॥
तेग़ रा फ़ताह गुर गोबिंद सिंघ
जानो दिल रा राह गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११४ ॥
साहिबि अकलील गुर गोबिंद सिंघ
ज़िबि हक तज़लील गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११५ ॥
ख़ाज़नि हर गंज गुर गोबिंद सिंघ
बरहमि हर रंज गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११६ ॥
दावरि आफ़ाक गुर गोबिंद सिंघ
दर दो आलम ताक गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११७ ॥
हक ख़ुद वसाफ़ि गुर गोबिंद सिंघ
बर तरीं औसाफ़ि गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११८ ॥
ख़ासगां दर पाइ गुर गोबिंद सिंघ
कुदसीआं बा राइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ ११९ ॥
मुकबलां मदाहि गुर गोबिंद सिंघ
जानो दिल रा राह गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२० ॥
ला-मकां पा-बोसि गुर गोबिंद सिंघ
बर दो आलम कौसि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२१ ॥
सुलस हम महिकूमि गुर गोबिंद सिंघ
रुबअ हम मख़तूमि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२२ ॥
सुदस हलका बगोशि गुर गोबिंद सिंघ
दुशमन-अफ़गान जोशि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२३ ॥
ख़ालिसो बे-कीना गुर गोबिंद सिंघ
हक हक आईना गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२४ ॥
हक हक अंदेश गुर गोबिंद सिंघ
बादशाह दरवेश गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२५ ॥
मकरमुल-फ़ज़ाल गुर गोबिंद सिंघ
मुनइमु ल-मुतआल गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२६ ॥
कारमुल-कराम गुर गोबिंद सिंघ
राहमुल-रहाम गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२७ ॥
नाइमुल-मुनआम गुर गोबिंद सिंघ
फ़ाहमुल-फ़हाम गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२८ ॥
दाइमो पाइंदा गुर गोबिंद सिंघ
फ़रख़ो फ़रख़ंदा गुर गोबिंद सिंघ ॥ १२९ ॥
फ़ैज़ि सुबहान ज़ाति गुर गोबिंद सिंघ
नूरि हक लमआत गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३० ॥
सामिआनि नामि गुर गोबिंद सिंघ
हक-बीं ज़ि इनआमि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३१ ॥
वासफ़ानि ज़ाति गुर गोबिंद सिंघ
वासिल अज़ बरकाति गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३२ ॥
राकिमानि वसफ़ि गुर गोबिंद सिंघ
नामवर अज़ लुतफ़ि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३३ ॥
नाज़िरानि रूइ गुर गोबिंद सिंघ
मसति हक दर कूइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३४ ॥
ख़ाक-बोसि पाइ गुर गोबिंद सिंघ
मुकबल अज़ आलाइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३५ ॥
कादिरि हर कार गुर गोबिंद सिंघ
बेकसां-रा यार गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३६ ॥
साजिदो मसजूद गुर गोबिंद सिंघ
जुमला फ़ैज़ो जूद गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३७ ॥
सरवरां रा ताज गुर गोबिंद सिंघ
बर तरीं मिअराज गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३८ ॥
अशर कुदसी रामि गुर गोबिंद सिंघ
वासिफ़ि इकराम गुर गोबिंद सिंघ ॥ १३९ ॥
उमि कुदस बकारि गुर गोबिंद सिंघ
गाशीआ बरदारि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४० ॥
कदर कुदरत पेशि गुर गोबिंद सिंघ
इनकियाद अंदेशि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४१ ॥
तिसअ उलवी ख़ाकि गुर गोबिंद सिंघ
चाकरि चालाकि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४२ ॥
तख़ति बाला ज़ेरि गुर गोबिंद सिंघ
लामकाने सैर गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४३ ॥
बर तर अज़ हर कदर गुर गोबिंद सिंघ
जाविदानी सदर गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४४ ॥
आलमे रौशन ज़ि गुर गोबिंद सिंघ
जानो दिल गुलशन ज़ि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४५ ॥
रूज़ अफ़ज़ूं जाहि गुर गोबिंद सिंघ
ज़ेबि तख़तो गाहि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४६ ॥
मुरशुदु-दारैनि गुर गोबिंद सिंघ
बीनशि हर ऐन गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४७ ॥
जुमला दर फ़रमानि गुर गोबिंद सिंघ
बर तर आमद शानि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४८ ॥
हर दो आलम ख़ैलि गुर गोबिंद सिंघ
जुमला अंदर ज़ैलि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १४९ ॥
वाहिबो वहाब गुरू गोबिंद सिंघ
फ़ातिहि हर बाब गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५० ॥
शामिलि-ल-अशफ़ाक गुर गोबिंद सिंघ
कामिलि-ल-अख़लाक गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५१ ॥
रूह दर हर जिसम गुर गोबिंद सिंघ
नूर दर हर चशम गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५२ ॥
जुमला रोज़ी ख़ारि गुर गोबिंद सिंघ
बैज़ि हक इमतार गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५३ ॥
बिसतो हफ़त गदाइ गुर गोबिंद सिंघ
हफ़त हम शैदाइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५४ ॥
ख़ाकहूबि सराइ गुर गोबिंद सिंघ
ख़मस वसफ़ पैराइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५५ ॥
बर दो आलम दसति गुर गोबिंद सिंघ
जुमला उलवी पसति गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५६ ॥
लाअल सगे गुलामि गुर गोबिंद सिंघ
दाग़दारि नामि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५७ ॥
कमतरीं ज़ि सगानि गुर गोबिंद सिंघ
रेज़ा-चीनि ख़्वानि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५८ ॥
साइल अज़ इनआमि गुर गोबिंद सिंघ
ख़ाकि पाकि अकदामि गुर गोबिंद सिंघ ॥ १५९ ॥
बाद जानश फ़िदाइ गुर गोबिंद सिंघ
फ़रकि ऊ बर पाइ गुर गोबिंद सिंघ ॥ १६० ॥

Source: ਹੁਕਮ, ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਅਤੇ ਪਾਤਿਸ਼ਾਹ