Source: ਜਪ ਅਤੇ ਤਪ (Jap and Tap), ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਬਾਰ ਬਾਰ ਬੋਲਣਾ ਜੱਪ ਹੈ ?
** स्री दसम ग्रंथ साहिब जी **
प्रेम किओ न किओ बुहतो तप कसट सहिओ तन को अति तायौ ।। कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।।
प्रेम किओ न किओ बुहतो तप कसट सहिओ तन को अति तायौ ।। प्रेम ते कीता नही अपणी अंतर आतमा नाल़, बाहर सरीर तन नू बौहत कसट दिते, बाहर सरीर नू कसट देणे नू, ही बौहत लोक करम धरम मंनदै ने, इह नही पता पारब्रहम प्रमेसर दी प्रापती हौ किवे होवेगी, अवदे वांग ओस दा नां वी रख लिआ मंनदै ने कि ओस दा बार बार नाम लैण नाल़ मिल जावे गा, लोक रब नू बेवकूफ मंनदै ने अवदे वरगा ,के ओह वडिआइ तौ खुस़ हौ के ,,पता नी संसारी पदारथा दी प्रापती कर लैण गे,, पर गुरबाणी एस दे 100% उलट खडी है
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ।।
वी किहा ए ,,पर ओह प्रेम असी अपणी अंतर आतमा नू ही करना ए ,,ना के परमेस़र बाहर है किते,ओह साडे विच ए ते असी ओस दे विच हा, बाहर ते जो अख नू दिख रिहा ओह सभ माईआ ए। पर एस च साडा कसूर न्ही कयु के जिहो जा सानू दस दिता ओवे दा असी मंन लिआ जिवे छोटा बचपना बचा ए, जिवे असी ओस नू दस देवा गे, ओवे दा मंन लवेगा, कसूर साडे प्रचार दा जो सिख पंडित प्रचारक ने, ओह सिरफ गोलक नाल़ जोडण दा प्रचार कर रहे ने, ए एस जियादा न्ही कुछ।।
कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।।
ए देखो ज़ी दसम पातसाह ने कासी दी मत नू किवे रदी दी टोकरी च सुट रहे ने, जो अज़ तक झूठ ग़ल प्रचारदे रहे,,, के दसम पातसह ने सिख कासी भेजे पडण ,,,,हुण तक संगत नू झूठ बोलदे रहे ,,सिख पंडित प्रचारक कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।। साफ दस रहे ने जो वी कासी च बैठ के बुह बेद पड़न नाल़ सार गिआन न आयो। हुण तक सिख पंडित प्रचारक इह ग़ल दा जोर सोर नाल़ प्रचार कर रहे हन १० पातसह ने सिख कासी भेजे १०१% ग़ल झूठ है ।
सगल जनमु सिव पुरी गवाइआ॥
भगत कबीर ते केह रिहा के सारा जनम मै स़िव पुरी (कासी) च गवा लिआ जीवन खराब हौ गिआ कासी च
॥तजी ले बनारस मति भई थोरी ॥१॥ रहाउ ।।
कबीर जी ते केह रहे ने तज़ी ए बनारस ( कासी) मति विवेक बुध दे अगे थौडी पै गई । सपसट केह रहे ने कासी मत अधूरी मत ए पूरन मत दे अगे
॥मरती बार मगहरि उठि आइआ ॥휽�
जदो बनारस कासी च मत थोडी सी कबीर जी दि तसली नही हौ रही सी गिआन नाल़ फिर 휽� मरती बार मगहिर उठ के चले गए ।। मगहिर नरदि भगति सी वेद मत सी ओथे गिआन होइआ कबीर साहिब वी रद कर रहे ने कासी मत नू
जिहड़े कहिंदे वाहिगुरू वाहिगुरू बार बार बोलणा जप है ते बार बार बोलण नाल ही परमेसर प्रापती कर लैणी उहनां लई
भूमि अकास पताल रसातल जछ भुजंग सभै सिर निआवैं ॥ पाइ सकै नही पार प्रभा हू को नेत ही नेतह बेद बतावैं ॥ खोज थके सभ ही खुजीआ सुर हार परे हरि हाथ न आवै ॥७॥२४९॥ नारद से चतुरानन से रुमना रिख से सभ हूं मिलि गाइओ ॥ बेद कतेब न भेद लखिओ सभ हार परे हरि हाथि न आइओ ॥ पाइ सकै नही पार उमापति सिध सनाथ सनंतन धिआइओ ॥ धिआन धरो तिह को मन मैं जिह को अमितोजि सभै जगु छाइओ
तीरथ कोट कीए इसनान दीए बहु दान महा ब्रत धारे ॥ देस फिरिओ कर भेस तपो धन के सधरे न मिले हरि पिआरे ॥ आसन कोट करे असटांग धरे बहु निआस करे मुख कारे ॥ दीन दइआल अकाल भजे बिनु अंत को अंत के धाम सिधारे
नादी बेदी सबदी मोनी जम के पटै लिखाइआ ॥२॥ (स्री गुरू ग्रंथ साहिब जी)
सबदी उह ने जेड़े इक स़बद नूं बार बार रटदे ने
भूमि अकास पताल रसातल जछ भुजंग सभै सिर निआवैं ॥ पाइ सकै नही पार प्रभा हू को नेत ही नेतह बेद बतावैं ॥ खोज थके सभ ही खुजीआ सुर हार परे हरि हाथ न आवै ॥७॥२४९॥ नारद से चतुरानन से रुमना रिख से सभ हूं मिलि गाइओ ॥ बेद कतेब न भेद लखिओ सभ हार परे हरि हाथि न आइओ ॥ पाइ सकै नही पार उमापति सिध सनाथ सनंतन धिआइओ ॥ धिआन धरो तिह को मन मैं जिह को अमितोजि सभै जगु छाइओ
बाणी दसम ग्रंथ साहिब
तीरथ कोट कीए इसनान दीए बहु दान महा ब्रत धारे ॥ देस फिरिओ कर भेस तपो धन के सधरे न मिले हरि पिआरे ॥ आसन कोट करे असटांग धरे बहु निआस करे मुख कारे ॥ दीन दइआल अकाल भजे बिनु अंत को अंत के धाम सिधारे
बाणी दसम ग्रंथ साहिब
किआ जपु किआ तपु किआ ब्रत पूजा॥ जा कै रिदै भाउ है दूजा॥ रे जन मनु माधउ सिउ लाईऐ॥ चतुराई न चतुरभुजु पाईऐ ॥
Source: ਜਪ ਅਤੇ ਤਪ (Jap and Tap), ਵਾਹਿਗੁਰੂ ਬਾਰ ਬਾਰ ਬੋਲਣਾ ਜੱਪ ਹੈ ?