Source: Did Guru Sahib Send Sikhs to Kashi ?
कहु कबीर जन भए खालसे प्रेम भगति जिह जानी ॥४॥३॥
** स्री दसम ग्रंथ साहिब जी **
प्रेम किओ न किओ बुहतो तप कसट सहिओ तन को अति तायौ ।। कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।।
प्रेम किओ न किओ बुहतो तप कसट सहिओ तन को अति तायौ ।।
प्रेम ते कीता नही अपणी अंतर आतमा नाल़, बाहर सरीर तन नू बौहत कसट दिते, बाहर सरीर नू कसट देणे नू, ही बौहत लोक करम धरम मंनदै ने, इह नही पता पारब्रहम प्रमेसर दी प्रापती किवे होवेगी, अवदे वांग ओस दा नां वी रख लिआ मंनदै ने कि ओस दा बार बार नाम लैण नाल़ मिल जावे गा, के ओह वडिआइ तौ खुस़ हौ के,पता नी संसारी पदारथा दी प्रापती कर लैण गे, पर गुरबाणी एस दे 100% उलट खडी है
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ।।
वी किहा ए, पर ओह प्रेम असी अपणी अंतर आतमा नू ही करना ए, ना के परमेस़र बाहर है किते, ओह साडे विच है ते असी ओस दे विच हा, बाहर ते जो अख नू दिख रिहा ओह सभ माईआ है। पर एस च साडा कसूर न्ही कयु के जिहो जा सानू दस दिता ओवे दा असी मंन लिआ जिवे छोटा बचपना बचा ए, जिवे असी ओस नू दस देवा गे, ओवे दा मंन लवेगा, कसूर साडे प्रचार दा है जो सिख प्रचारक ने, ओह सिरफ गोलक नाल़ जोडण दा प्रचार कर रहे ने, ए एस जियादा न्ही कुछ ।।
कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।।
ए देखो ज़ी दसम पातसाह ने कासी दी मत नू किवे रदी दी टोकरी च सुट रहे ने, जो अज़ तक झूठ ग़ल प्रचारदे रहे, के दसम पातसह ने सिख कासी भेजे पडण, हुण तक संगत नू झूठ बोलदे रहे, सिख पंडित प्रचारक कासी मै जाइ पड़िओ अति ही बहु बेदन को करि सार न आयो ।। साफ दस रहे ने जो वी कासी च बैठ के बुह बेद पड़न नाल़ सार गिआन न आयो । हुण तक सिख पंडित प्रचारक इह ग़ल दा जोर सोर नाल़ प्रचार कर रहे हन १० पातसह ने सिख कासी भेजे १०१% ग़ल झूठ है ।
सगल जनमु सिव पुरी गवाइआ ।।
भगत कबीर ते केह रिहा के सारा जनम मै स़िव पुरी (कासी) च गवा लिआ जीवन खराब हौ गिआ कासी च
तजी ले बनारस मति भई थोरी ॥१॥ रहाउ ।।
कबीर जी ते केह रहे ने तज़ी ए बनारस ( कासी) मति विवेक बुध दे अगे थौडी पै गई । सपसट केह रहे ने कासी मत अधूरी मत है पूरन मत दे अगे
॥मरती बार मगहरि उठि आइआ ॥
जदो बनारस कासी च मत थोडी सी कबीर जी दि तसली नही हौ रही सी गिआन नाल़ फिर मरती बार मगहिर उठ के चले गए ।। मगहिर नरदि भगति सी वेद मत सी ओथे गिआन होइआ कबीर साहिब वी रद कर रहे ने कासी मत नू
जद कबीर साहिब रद कर रहे ने कि मेरी तसली न्ही होइ कासी मत नाल़ कबीर बाणी ते सारी भगत बाणी पंजवे पतसाह ने दरज कीती । की पंजवे पतसाह नू पता नही सी कि कासी मत पंडित विदवान दी मत है ? फिर ओह किउ भेजण गे ओथे सिखा नू पड़्हन ?